History Ch 7 व्यापार और भूमण्डलीकरण Vyapar aur bhumandalikaran class 10th solutions

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 10 के सामाजिक विज्ञान इतिहास के पाठ सात व्यापार और भूमण्डलीकरण (Vyapar aur bhumandalikaran class 10th solutions) को पढ़ेंगे।

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7. व्यापार और भूमण्डलीकरण

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1 विश्व बाजार किसे कहते हैं ?

उत्तर :- उस तरह के बाजार को हम विश्व बाजार कहेंगे जहाँ विश्व के सभी देशों की वस्तुएं आम लोगों को खरीदने के लिए उपलब्ध हो जैसे :- भारत की आर्थिक राजधानी “मुंबई ”।

2. औधोगिक क्रांति क्या है ?

उत्तर :- वाष्प शक्ति से संचालित मशीनों द्वारा बड़े बड़े कारखानों में व्यापक पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन।  इसका केंद्र इंग्लैंड था।  यह 1750 के बाद आरंभ हुआ।

3. आर्थिक संकट से आप क्या समझते हैं?

उत्तर :- वैसी स्थिति जब उसके तीनों आधार कृषि,उद्योग,और व्यापार का विकास अवरुद्ध हो जाए।  लाखों लोग बेरोजगार हो जाए,बैंकों और कंपनियों का दिवाला निकल जाए, तथा वस्तु और मुद्रा दोनों की बाजार में कोई कीमत नहीं रहे।.

4. भूमंडलीकरण किसे कहते हैं?

उत्तर :- जीवन के सभी क्षेत्रों का एक अंतरराष्ट्रीय स्वरूप, जिसने दुनिया के सभी भागों को आपस में जोड़ दिया है। संपूर्ण विश्व एक बड़े गांव के रूप में परिवर्तित हो गया है।

5. ब्रेटेन वुड्स सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?

उत्तर :- ब्रिटेन वूंड्स सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर या आर्थिक सहयोग व स्थिरता कायम करना तथा जिस पर विश्वशांति की नीव टिकी थी।

6.बहुराष्ट्रीय कंपनी क्या है?

उत्तर :- कई देशों में एक ही साथ व्यापार और व्यवसाय करने वाले कंपनी को बहुराष्ट्रीय कंपनी कहा जाता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

1. 1929 के आर्थिक संकट के कारणों को संक्षेप में स्पष्ट करें।

उत्तर :- 1929 के आर्थिक मंदी  का बुनियादी कारण स्वयं अर्थव्यवस्था के स्वरूप में ही समाहित था।  प्रथम विश्व युद्ध के 4 वर्षों में यूरोप को छोड़कर बाजार आधारित होता गया। मुनाफे बढ़ते चले गए अधिकांश लोग गरीब होते रहे। ऐसी स्थिति हो गई थी, की जो कुछ उत्पादन किया जाता था उसे खरीदने वाले लोग बहुत कम थे।

2. औधोगिक क्रांति ने किस प्रकार विश्व बाजार के स्वरूप को विस्तृत किया।

उत्तर :- औधोगिक क्रांति ने बाजार को तमाम आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बना दिया। इसी के साथ जैसे-जैसे औद्योगिक क्रांति का विकास हुआ बाजार का स्वरूप विश्वव्यापी होता चला गया। और 20वी शताब्दी के पहले सभी महादेशों में अपनी उपस्थिति कायम कर ली। 18 वीं शताब्दी के मध्य भाग से इंग्लैंड में बड़े बड़े कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन हुआ।  और कच्चे माल की आवश्यकता हुई। इंग्लैंड ने उतरी अमेरिका, एशिया, भारत और अफ्रीका की ओर अपना ध्यान खींचा और वहां कच्चा माल और  बनाया बाजार में भी मिला विश्व बाजार के इस स्वरूप का आधार कपड़ा उद्योग था।

3. विश्व बाजार के स्वरूप को समझाएं।

उत्तर :- औद्योगिक क्रांति के फैलाव के साथ-साथ बाजार का स्वरूप होता गया। इसमें व्यापार श्रमिकों का पलायन और पूंजी का प्रवाह इन तीन आर्थिक प्रवृत्तियों को जन्म दिया व्यापार कच्चे मालों को इंग्लैंड और यूरोपीय देशों तक पहुंचाते हैं। कारखानों में निर्मित वस्तुओं को विश्व के कोने कोने में पहुंचाने तक सीमित था।

श्रमिकों के प्रवाह के अंतर्गत औपनिवेशिक देश (भारत) के लोगों को निश्चित अवधि के लिए एक समझौता के तहत यूरोपीय देश अपने यहां ले जाते थे।  मजदूरों की मजदूरी काफी कम होती थी।

4. भूमंडलीकरण में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के योगदान (भूमिका) को स्पष्ट करें।

उत्तर :- भूमंडलीकरण राजनीतिक,आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विश्वव्यापी समायोजन की एक प्रक्रिया है। जो विश्व के विभिन्न भागों के लोगों को भौतिक व मनोवैज्ञानिक स्तर पर एकत्रित करने का सफल प्रयास करती है। भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का महत्वपूर्ण योगदान है।

5. 1950 के बाद विश्व अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए किए जाने वाले प्रयासों पर प्रकाश डालें।

उत्तर :- द्वितीय महायुद्ध समाप्त होने के बाद उससे उत्पन्न समस्याओं को हल करने तथा व्यापक तबाही से निपटने के लिए पूर्ण निर्माण का कार्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आरंभ हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपना सारा कार्य अपने विभिन्न और संघीय संस्थाओं यूनेस्को,विश्व स्वास्थ्य संगठन, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय,इत्यादि के माध्यम से करना आरंभ किया।

वह अपनी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक नीतियों और संबंधों को निर्धारित करने में इसका भरपूर इस्तेमाल करता था।

6. भूमंडलीकरण के भारत पर प्रभाव को स्पष्ट करें।

उत्तर :- भूमंडलीकरण के भारत पर व्यापार प्रभाव पड़ा है।  1919 ईस्वी की आर्थिक नीति की घोषणा के बाद भारत में पूंजी निवेश और व्यापार में काफी बदलाव हुआ। भूमंडलीकरण के कारण देश में सेवा क्षेत्र का काफी तीव्र गति से विस्तार हुआ। सेवा क्षेत्र के अंतर्गत बैंकिंग, बीमा, संचार,व्यापार आदि क्षेत्र में भारत आज विश्व का अग्रणी देश है।

7. विश्व बाजार के लाभ हानि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

उत्तर :- विश्व बाजार में व्यापार और उद्योग की तीव्र गति से बढ़ाया।  व्यापार और उद्योगों के विकास में पूंजीपति,मजदूर और मजबूत मध्यमवर्ग नामक तीन शक्तिशाली सामाजिक वर्ग को जन्म दिया औपनिवेशिक देशों में रेल मार्ग, सड़क, बंदरगाह, खनन, बागवानी जैसे संरचनात्मक क्षेत्र का विकास हुआ।

विश्व बाजार में नवीन तकनीकी को सृजित किया।  इन तक नीतियों में रेलवे, वाष्प इंजन, भाप का जहाज, टेलीग्राम, बड़े जलापूत, महत्वपूर्ण तकनीकी ने विश्व बाजार और उसके लाभ को कई गुना बढ़ा दिया। औपनिवेशिक आदेशों में विश्वा बाजार ने अकाल, भुखमरी गरीबी जैसे मानवीय संकट को भी जन्म दिया।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. 1929 के आर्थिक संकट के कारण और परिणामों को स्पष्ट करें ।

उत्तर :- 1929 के आर्थिक संकट का बुनियादी कारण स्वयं इस अर्थव्यवस्था के स्वरूप में ही समाहीत था।  प्रथम महायुद्ध के 4 वर्षों में यूरोप को छोड़कर बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का विस्तार होता चला गया। उसके मुनाफे  बढ़ते चले गए।  दूसरी तरह अधिकांश लोग गरीबी और अभाव में पिसती रहे।  नवीन तकनीकी प्रगति तथा बढ़ते हुए मुनाफे के कारण उत्पादन में भी जो भारी वृद्धि हुई उससे ऐसी  स्थिति उत्पन्न हो गई।  कि जो कुछ उत्पादित किया जाता था उसे खरीद सकने वाले लोग बहुत कम थे।

1920 ईस्वी के दशक में मध्य में बहुत सारे देश ने अमेरिका से कर्ज लेकर अपनी युद्ध से तबाह हो चुके थे। अमेरिका में संकट के लक्षण प्रकट होते ही उसने कुछ सनरक्षात्मक  उपाय करना आरंभ किया।

इस मंदी का बुरा प्रभाव अमेरिका को ही झेलना पड़ा। मंदी के कारण बैंकों ने लोगों को कर्ज देना बंद कर दिया, और दिए हुए कर्ज की वसूली तेज कर दी।  किसान अपनी उपज को बेच नही पाने के कारण तबाह हो गए। बैंकों ने लोगों के सामनो,मकान, कार, जरूरी चीजों को कुर्क कर लिया। कर्ज की वसूली नहीं होने से बैंक बर्बाद हो गया।  कई कंपनियां बंद हो गई। 1933 ईस्वी तक 4000 से ज्यादा बैंक बंद हो चुका था। लगभग  110000 कंपनियां चौपट हो गई थी।

महामंदी ने भारतीय व्यापार को भी प्रभावित किया।  1928-1934 ईस्वी के बीच देशों के आयात निर्यात घटकर लगभग आधी हो गई।  मंदी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को आरंभ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2. 1945 से 1960 के बीच विश्व स्तर पर विकसित होने वाले आर्थिक संबंधों पर प्रकाश डालें।

उत्तर :- 1945 से 1960 के दशक के बीच विकसित होने वाले अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विभाजित हैं। 1945 ईस्वी के बाद विश्व में दो भिन्न अर्थव्यवस्था का प्रभाव पड़ा और दोनों ने विश्व स्तर पर अपने प्रभाव तथा नीतियों को बढ़ाने का प्रयास किया।  जबकि भारत जैसे देशों को वह सिर्फ अपने प्रभाव में ही ला सका।

पूँजीवादी अर्थतंत्र वाले देश का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था। इसका प्रमुख अर्थ तंत्र और विचार के बढ़ते प्रभाव को रोकता था इस पर अमेरिका हर कीमत पर अपना नियंत्रण कायम रखना चाहता था ।

1945-60 के दशक में पश्चिमी यूरोप का विश्व राजनीति और अर्थ तंत्र के प्रभाव काफी क्षीण हो गया।  1970 ईस्वी तक एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश उनसे छीन गए।1957 में यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना की ब्रिटेन 1960 ईस्वी में इसका सदस्य बना।

एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र देशों में नवीन आर्थिक संबंधों का विकास हुआ। 1947 ईस्वी के बाद भारत की आजादी के बाद उन देशों के स्वतंत्र की लहर हुई और 15 वर्षों में सभी देश स्वतंत्र हो गए।.

3. भूमंडलीकरण के कारण आम लोगों के जीवन में आने वाले परिवर्तनों को स्पष्ट करें।

उत्तर :- वर्तमान परिदृश्य में भूमंडलीकरण के प्रभाव को आर्थिक क्षेत्र में अधिक स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।  भूमंडलीकरण के आर्थिक स्वरूप का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। मुक्त बाजार,मुक्त व्यापार, बहुराष्ट्रीय निगमों का प्रसार उद्योग तथा सेवा क्षेत्र का निजीकरण उक्त आरती भूमि कौन भूमंडलीकरण के मुख्य तत्व है।

भूमंडलीकरण का प्रभाव आम जीवन पर साफ दिख रहा है। भूमंडलीकरण के कारण जीविकोपार्जन के क्षेत्र में जो बदलाव आया है। उसकी झलक शहर कस्बा और गाँव की सभी जगह साफ दिखाई पड़ रहा है। 1991 के बाद संपूर्ण विश्व में सेवा क्षेत्र का विस्तार काफी तीव्र गति से हुआ है। कई क्षेत्र भूमंडलीकरण के दौरान काफी तेजी से फैला है जिससे लोगों को जीविकोपार्जन कई जमीन अवसर मिले हैं।

4. 1919 से 1945 के बीच विकसित होने वाले राजनैतिक और आर्थिक संबंधों पर टिप्पणी लिखें।

उत्तर :- 1919 के बाद जो भी अंतरराष्ट्रीय संबंध विकसित हुआ उसमें आर्थिक कार्य को या आर्थिक स्थिति का महत्वपूर्ण स्थान था। 1929 के आर्थिक मंदी को आधार वर्ष मानकर 1929 से 1945 के बीच बनने वाले आर्थिक संबंधों को दो भागों में बाँटा। 1919 से 1929 तक विकास का काल था। प्रथम महायुद्ध के बाद विश्वा से यूरोप का प्रभाव क्षिण हो गया। वह मांग में कमी के कारण उत्पन्न हुआ। 1922 ईस्वी के बाद कुछ स्थिति बदली।  वहां तकनीकी उन्नति के आधार पर औद्योगिक विस्तार काफी हुआ 1928-29 ईस्वी में पचास लाख कार की बिक्री हुई।

सेवियत रूस और जापान इन दोनों देशों ने भी 1919 ईस्वी से 1929 ईस्वी के बीच आर्थिक क्षेत्र में काफी प्रगति की और भारत और अन्य औपनिवेशिक देशों में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार हुआ।

1929 ईस्वी के बाद जो अंतरराष्ट्रीय संबंध विकसित हुआ।  इस महा मंदी की शुरुआत अमेरिका से हुआ।  जो 1933 ईस्वी तक बना रहा।  इसका मुख्य उद्देश्य कृषि और उद्योग में संतुलन लाना था।  जनकल्याण के तहत रेल,मार्ग, सड़क, पुल, आदि कार्य किया जाता था।

इटली और जर्मनी के लोकतंत्र को विफलता और अधिनायक वादी तंत्र का उदय के कई और देशों को अपने लपेटे में ले लिया। जैसे – स्पेन, यूनान,ऑस्ट्रिया आदि।

5. दो महायुद्ध के बीच और 1945 के बाद औपनिवेशिक देशों में होने वाले राष्ट्रीय आंदोलन पर एक निबंध लिखें।

उत्तर :- प्रथम विश्वयुद्ध में मानवीय सभ्यता को व्यापार स्तर पर प्रभावित किया जो 20 वर्षों के दौरान औपनिवेशिक देशों ने काफी  विकास और फैलाव हुआ जैसे भारत में कपड़ा,जूट, खनन आदि। का विकास हुआ 1928 से 1934 ईस्वी के बीच आयात निर्यात लगभग आधी हो गई। कृषि उत्पादों की कीमतें काफी गिर गई मंदी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को आरंभ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र देशों में एक नवीन आर्थिक संबंध विकसित हुआ।  1947 में भारत की आजादी के बाद इन देशों में स्वतंत्रता की एक लहर पैदा हो गई। और अगले 15 वर्षों में सभी देश लगभग आजाद हो गए।

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