इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 10 के विज्ञान के पाठ 12 विद्युत (Vidyut Class 10th Solutions) को पढ़ेंगे।
12.विद्युत
विद्युत धारा– आवेश के प्रवाह को विद्युत धारा कहते हैं।
चालक– ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विद्युत आवेश एक भाग से दूसरे भाग तक जाता है, चालक कहे जाते हैं। जैसे- धातु, मनुष्य या जानवर का शरीर, पृथ्वी आदि।
विद्युतरोधी– ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विद्युत आवेश एक भाग से दूसरे भाग तक नहीं जाता है, विद्युत रोधी कहे जाते हैं। जैसे- काँच, प्लैस्टिक, रबर, लकड़ी आदि।
विद्युत विभव– किसी बिंदु पर विद्युत विभव कार्य का वह परिणाम है जो प्रति एकांक (इकाई) आवेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किया जाता है।
यदि आवेश q को अनंत से किसी बिंदु p तक लाने में किया गया कार्य w हो, तो उस बिंदु p पर विद्युत विभव होता है-
V = W/q
विभवांतर– किन्ही दो बिन्दुओं के बीच विभवांतर की माप उस कार्य से होती है जो प्रति एकांक आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया जाता है।
यदि एक आवेश q को बिंदु B से बिंदु A तक लाने में किया गया कार्य VAB हो, तो A और B के बीच विभवांतर
VAB= W/q
सेल या बैटरी– सेल या बैटरी एक ऐसी युक्ति है, जो अपने अंदर हो रहेरासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा सेल के दोनों इलेक्ट्रोडों के बीच विभवांतर बनाए रखती है।
विद्युत परिपथ– जिस पथ से होकर विद्युत-धारा का प्रवाह होता है, उसे विद्युत-परिपथ कहते हैं।
ऐमीटर– जिस यंत्र द्वारा किसी विद्युत-परिपथ की धारा मापी जाती है, उसे ऐमीटर कहते है।
वोल्टमीटर– जिस यंत्र द्वारा किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभ्वांतर को मापा जाता है, उसे वोल्टमीटर कहते हैं।
ऐमीटर और वोल्टमीटर में अंतर–
ऐमीटर–
1. यह किसी विद्युत-परिपथ में धारा की प्रबलता को मापता है।
2. यह किसी विद्युत परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है।
3. इसका स्केल ऐम्पियर (A) में अंकित होता है।
वोल्टमीटर–
1. यह किसी विद्युत परिपथ में किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवांतर को मापता है।
2. यह किसी विद्युत परिपथ में समांतरक्रम में जोड़ा जाता है।
3. इसका स्केल वोल्ट (V) में अंकित होता है।
ओम का नियम
1826 में जर्मन वैज्ञानिक जॉर्ज साइमन ओम ने किसी चालक के सिरों पर लगाए विभवांतर तथा उसमें प्रवाहित होनेवाली विद्युत-धारा का संबंध एक नियम द्वारा व्यक्त किया। इस नियम को उन्हीं के नाम पर ‘ओम का नियम‘ कहा जाता है।
ओम के नियम के अनुसार,
यदि किसी चालक के ताप में परिवर्तन न हो, तो उसमें प्रवाहित विद्युत-धारा उसके सिरों के बीच आरोपित विभवांतर के समानुपाती होती है।
I = V/R
जहाँ, R एक नियतांक है जिसे चालक का प्रतिरोध कहते हैं।
ओम का नियम का सत्यापन–
ओम का नियम के सत्यापन के लिए एक शुष्क सेल, एक ऐमीटर A, एक वोल्टमीटर V, एक स्विच S तथा एक नाइक्रोम तार के टुकड़े PQ को संयोजित किया जाता है।
स्विच S को बंद करने पर परिपथ में धारा प्रवाहित होने लगती है। ऐमीटर A परिपथ में प्रवाहित होनेवाली धारा I को मापता है तथा वोल्टमीटर V नाइक्रोम के तार PQ के सिरों P एवं Q के बीच का विभवांतर V मापता है।
अब एक के स्थान पर दो सेल लगाकर पुनः ऐमीटर तथा वोल्टमीटर के पठन नोट करते हैं। इस प्रयोग को बारी-बारी से तीन, चार और पाँच सेलों को परिपथ में जोड़कर दुहराते हैं। हम पाते हैं कि प्रत्येक बार अनुपात V/I का मान लगभग समान आता है।
अब यदि विभवांतर V को X-अक्ष पर तथा धारा I को Y-अक्ष पर लेकर V तथा I के बीच एक ग्राफ खींचा जाए, तो प्राप्त ग्राफ एक सरल रेखा होता है। इससे यह सिद्ध होता है कि विद्युत-धारा I विभवांतर V के समानुपाती होती है।
प्रतिरोध– किसी पदार्थ के वह गुण जो उससे होकर धारा के प्रवाह का विरोध करता है, उस पदार्थ का विद्युत प्रतिरोध या केवल प्रतिरोध कहलाता है।
प्रतिरोध का SI मात्रक ओम Ω होता है। एक ओम एक वोल्ट प्रति ऐम्पियर होता है।
प्रतिरोधक– उच्च प्रतिरोध वाले पदार्थों को प्रतिरोधक कहा जाता है।
प्रतिरोधक एक युक्ति है और प्रतिरोध उसका एक गुण है।
किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-
1. तार की लंबाई पर–किसी तार का प्रतिरोध R उसकी लंबाई l के समानुपाती होता है।
2. तार की मोटाई पर–किसी तार का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल A के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
3. चालक के पदार्थ पर–यदि विभिन्न पदार्थों के तार समान लंबाई और समान मोटाई के हों, तो उनके प्रतिरोध भिन्न-भिन्न होंगे।
4. चालक के ताप पर–ताप बढ़ने से चालक का ताप बढ़ता है।
जहाँ, ρ दिए गए ताप पर तार के पदार्थ के लिए नियतांक है। इसे चालक तार के पदार्थ की प्रतिरोधकता कहते हैं। प्रतिरोधकता का SI मात्रक Ωm ओम मीटर होता है।
प्रतिरोधकों का समुहन–
दो या दो से अधिक प्रतिरोधकों को एक-दूसरे से कई विधियों द्वारा जोड़ा जा सकता है। इसमें दो विधियाँ मुख्य हैं-
1. श्रेणीक्रम समूहन तथा
2. समांतरक्रम समूहन
1. श्रेणीक्रम समूहन–श्रेणीक्रम में जुड़े हुए प्रतिरोधकों का समतुल्य प्रतिरोध उन प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।
2. समांतरक्रम समूहन–पार्श्वक्रम या समांतरक्रम में जुड़े हुए प्रतिरोधकों के समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम उन प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है।
प्रतिरोधकों के श्रेणीक्रम तथा समांतरक्रम समुहन में अंतर–
श्रेणीक्रम समुहन–
1. सभी प्रतिरोधकों में एक ही धारा प्रवाहित होती है, परन्तु उनके सिरों के बीच विभवांतर उनके प्रतिरोधकों के अनुसार अलग-अलग होता है।
2. प्रतिरोधकों का समतुल्य प्रतिरोध सभी प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।
3. समतुल्य प्रतिरोध का मान प्रत्येक प्रतिरोधकों के प्रतिरोध के मान से अधिक होता है।
समांतरक्रम समुहन– 1. सभी प्रतिरोधकों के सिरों के बीच एक ही विभवांतर होता है, परंतु उनके प्रतिरोधों के मान के अनुसार उनमें भिन्न-भिन्न धारा प्रवाहित होती है। 2. प्रतिरोधकों के समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम सभी प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के व्युत्क्रम के योग के बराबर होता है। 3. समतुल्य प्रतिरोध का मान प्रत्येक प्रतिरोधक के प्रतिरोध के मान से कम होता है।
विद्युत–शक्तिः किसी विद्युत-परिपथ में विद्युत ऊर्जा के व्यय की दर को उस परिपथ की विद्युत-शक्ति कहते हैं।
Note:विद्युत-शक्ति का मात्रक वाट होता है। इसे संकेत में W से सुचित किया जाता है।
बिजली के उपकरणों की सुरक्षा के लिए फ्यूज का उपयोग किया जाता है।
फ्यूज के तार ऐसे पदार्थ के बने होते हैं जिनकी प्रतिरोधकता अधिक होती है और गलनांक कम।
महत्वपूर्ण तथ्य
विद्युत धारा का SI मात्रक एम्पियर, विभ्वांतर का SI मात्रक वोल्ट, विद्युत विभव का SI मात्रक वोल्ट, विद्युत शक्ति का SI मात्रक वाट तथा आवेश का SI मात्रक कुलॉम होता है।
विद्युत चुम्बक बनाने के लिए नर्म लोहा का उपयोग किया जाता है।
स्थायी चुम्बक बनाने के लिए इस्पात का उपयोग किया जाता है।
विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले युक्ति को जनित्र कहते हैं।
आमीटर को विद्युत परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है।
धातुओं में धारा का प्रवाह मुक्त इलेक्ट्रॉन के कारण होता है।
एक बल्ब से एक मिनट में 120 कूलम्ब आवेश प्रवाहित हो रहा है, तो विद्युत धारा का मान 2 एम्पियर का होता है।
आमीटर से धारा मापा जाता है।
गैल्वेनोमीटर विद्युत धारा की उपस्थिति को दर्शाता है।
ऐम्पियर-घंटा ऊर्जा का मात्रक है।
ऊर्जा का SI मात्रक जूल होता है।
1 वोल्ट 1 जूल/कूलॉम होता है।
विभवांतर मापने वाले यंत्र को वोल्टमीटर कहा जाता है।
हाइड्रो का अर्थ जल होता है।
बैट्री से दिष्ट धारा प्रवाहित है।
ताप बढ़ने पर चालक का प्रतिरोध बढ़ता है। वैद्युत प्रतिरोधकता का SI मात्रक ओम-मीटर होता है।
विद्युत का सबसे अच्छा चालक चाँदी है।
वोल्ट मीटर को विद्युत परिपथ में समांतर क्रम में जोड़ा जाता है।
इलेक्ट्रीक हीटर में नाइक्रोम का प्रयोग किया जाता है।
आमीटर का प्रतिरोध नगण्य होता है।
विद्युत बल्ब का फिलामेंट टंगस्टन का बना होता है।
1 Hp (हॉर्स पावर) 746 वाट के बराबर होता है।
एक वाट, एक जुल/सेकेंड के बराबर होता है।
( पृष्ठ: 222 )
पाठ में दिए हुए प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. विद्युत परिपथ का क्या अर्थ है ?
उत्तर—वैसी व्यवस्था, जिसमें विद्युत धारा प्रवाहित होती है, उसे विद्युत परिपथ कहते हैं। इसमें बैटरी, चालक, प्रतिरोध, स्विच तथा अनेक उपकरण जुड़े होते हैं
प्रश्न 2. विद्युत धारा के मात्रक की परिभाषा लीखिए ।
उत्तर – विद्युत धारा का मात्रक ऐम्पियर होता है । इसे ‘A’ द्वारा सूचित किया जाता है। जब किसी चालक से 1 सेकेण्ड तक 1 कूलम्ब धारा प्रवाहित होती है तब उस प्रयुक्त विद्युत धारा की मात्रा को 1 ऐम्पियर कहते हैं ।
( पृष्ठ: 224 )
प्रश्न 1. उस युक्ति का नाम लिखिए जो किसी चालक के सिरों पर विभवांतर बनाए रखने में सहायता करती है ।
उत्तर – उस युक्ति का नाम ‘रोल’ है, जो विभवान्तर बनाए रखने में सहायता करती है।
प्रश्न 2. यह कहने का क्या तात्पर्य है कि दो बिंदुओं के बीच विभवांतर IV है ?
उत्तर – दो बिंदुओं के बीच विभवान्तर IV है का अर्थ है कि | कुलॉग का आवेश के साथ 1 जूल कार्य होता है ।
प्रश्न 3.6 V बैटरी से गुजरनेवाले हर एक कूलॉम आवेश को कितनी ऊर्जा दी जाती है ?
उत्तर – सूत्र से, ऊर्जा (W) = VQ = 6 V x ly = 6 J (जूल) ।
(पृष्ठ : 232 )
प्रश्न 1. किसी चालक का प्रतिरोध किन कारकों पर निर्भर करता है ?
उत्तर- किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है :
(i) किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लम्बाई के समानुपाती होता है ।
Roc 1, जहाँ R = प्रतिरोध, 1 = तार की लम्बाई ।
(ii) किसी चालक का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल का उलटा और समानुपाती होता है ।
(iii) चालक का प्रतिरोध उसके प्रकृति पर भी निर्भर करता है, जैसे सिल्वर के चालक का प्रतिरोध 1.6 x 10-92, जबकि ऐलुमिनियम का प्रतिरोध 2.63 × 108 2 है ।
प्रश्न 2. समान पदार्थ के दो तारों में यदि एक पतला तथा दूसरा मोटा हो, तो इनमें से किसमें विद्युत धारा आसानी से प्रवाहित होगी, जबकि उन्हें समान विद्युत स्रोत से संयोजित किया जाता है ? क्यों ?
उत्तर—हम जानते हैं कि किसी चालक का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल का उलटा और समानुपाती होता है । इसलिए मोटे चालक का प्रतिरोध पतले तार से कम होगा। इस कारण मोटे तार से विद्युत धारा अधिक प्रवाहित होगी ।
प्रश्न 3. मान लीजिए किसी वैद्युत अवयव के दो सिरों के बीच विभवांतर को उसके पूर्व के विभवांतर की तुलना में घटाकर आधा कर देने पर भी उसका प्रतिरोध नियत रहता है । तब उस अवयव से प्रवाहित होनेवाली विद्युत धारा में क्या परिवर्तन होगा ?
उत्तर – जब विभवान्तर को आधा कर देते हैं तब उसका प्रतिरोध नियत रहता है तो उस अवयव से प्रवाहित होनेवाली विद्युत धारा भी आधी हो जाएगी, क्योंकि ओम के नियम से विभवांतर विद्युत धारा के समानुपाती होता है ।
प्रश्न 4. विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्रातु के क्यों बनाए जाते हैं ?
उत्तर- चूँकि मिश्रातु (मिश्रधातु) की प्रतिरोधकता शुद्ध धातु (अवयवी धातु) की अपेक्षा अधिक होती है । इस कारण ये (मिश्रधातुएँ) उच्च तापमान पर जल्द दहन नहीं करते हैं । इसीलिए विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्रधातु (मिश्रातु ) के बनाए जाते हैं ।
प्रश्न 5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 230 पर की तालिका 12.2 में दिए गए आँकड़ों के आधार पर दीजिए :
(a) आयरन (Fe) तथा मरकरी (Hg) में कौन अच्छा विद्युत चालक है ?
(b) कौन – सा पदार्थ सर्वश्रेष्ठ चालक है ?
उत्तर – (a) चूँकि आयरन (Fe) की प्रतिरोधकता 10.0 x 108 होती है तथा मरकरी (Hg ) की प्रतिरोधकता 94.0 x 10 ” होता है । इसलिए आयरन (Fe), मरकरी (Hg) की अपेक्षा विद्युत का अच्छा चालक है ।
प्रश्न 3. श्रेणीक्रम में संयोजित करने के स्थान पर वधुत यु में संयोजित करने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर—श्रेणीक्रम में संयोजित करने के स्थान पर विद्युत युक्तियों को पार्श्वक्रम में संयोजित करने के निम्नलिखित लाभ है :
(i) समान्तरक्रम में तुल्य प्रतिरोध का मान श्रेणीक्रम की अपेक्षा कम होता है
(ii) पार्श्वक्रम वाले प्रतिरोधों में विद्युत धारा का मान अधिक हो जाता है
(iii) पार्श्वक्रम में कम प्रतिरोधक के कारण ऊर्जा का क्षय कम होता है
अभ्यास : प्रश्न तथा उत्तर
प्रश्न 1. प्रतिरोध R के किसी तार के टुकड़े को पाँच बराबर भागों में काटा जाता है । इन टुकड़ों को फिर पार्श्वक्रम में संयोजित कर देते हैं । यदि संयोजन का तुल्य प्रतिरोध R’ है, तो R/R’ अनुपात का मान क्या है ?
(a) 1/25 (b) 1/5 (c) 5 (d) 25
उत्तर—-(d) 25.
प्रश्न 2. निम्नलिखित में कौन-सा पद विद्युत परिपथ में विद्युत शक्ति को निरूपित नहीं करता ?
(a) I 2 R (b) IR 2 (c) VI (d) V2/R
उत्तर—(b) IR2
प्रश्न 3. किसी विद्युत बल्ब का अनुमंताक 220 V; 100 W है । जब इसे 110V पर प्रचालित करते हैं तब इसके द्वारा उपभुक्त शक्ति कितनी होती है ?
(a) 100 W (b) 75 W (c) 50W (d) 25 W
उत्तर- (d) 25 W.
प्रश्न 4. दो चालक तार, जिनके पदार्थ, लंबाई तथा व्यास समान हैं, किसी विद्युत परिपथ में पहले श्रेणीक्रम में और फिर पार्श्वक्रम में संयोजित किए जाते हैं। श्रेणीक्रम तथा पार्श्वक्रम संयोजन में उत्पन्न ऊष्माओं का अनुपात क्या होगा ?
(a) 1:2 (b) 2:1 (c) 1:4 (d) 4:1
उत्तर— (c) 1 : 4.
प्रश्न 5. किसी विद्युत परिपथ में दो बिंदुओं के बीच विभवांतर मापने के लिए वोल्टमीटर को किस प्रकार संयोजित किया जाता है ?
उत्तर—परिपथ में वोल्टमीटर को पार्श्वक्रम में संयोजित किया जाता है ।
Vidyut Class 10th Solutions
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