तुमुल कोलाहल कलह में का संपूूर्ण व्‍याख्‍या | Tumul Kolahal Kalah Me Class 12th Hindi Solution Notes

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 12 हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ छ: ‘तुमुल कोलाहल कलह में (Tumul Kolahal Kalah Me Class 12th Hindi Solution Notes)’ को पढ़ेंगे।

Tumul Kolahal Kalah Me Class 12th

6. तुमुल कोलाहल कलह में
कवि- जयशंकर प्रसाद

लेखक-परिचय
जीवनकाल : 1889-1937
जन्मस्थान : वाराणसी, उत्तरप्रदेश
पिता : देवी प्रसाद साह

शिक्षा : आठवीं तक | संस्कृत, हिन्दी, फारसी, उर्दू की शिक्षा घर पर नियुक्त शिक्षकों द्वारा दिया गया।
विशेष परिस्थिति : बारह वर्ष की अवस्था में पितृविहीन, दो वर्ष बाद माता की मृत्यु
कृतियाँ : इंदु 1909 में प्रकाशित जिसमें कविता, कहानी, नाटक इत्यादि शामिल है।
प्रमुख काव्‍य संकलन : झरना (1918), आँसू (1925), लहर (1933)
महाराणा का महत्त्व, करुणालय, प्रेम पथिक, कामायनी, छाया, इंद्रजाल, कंकाल, इत्यादि।
यह एक छायावाद के कवि हैं।
कामायनी में कुल 15 सर्ग हैं।
पात्र : मनु = मनुष्य का मन, श्रद्धा = मनुष्य की हृदय, इड़ा = मनुष्य की बुद्धि

कामायनी

मन यज्ञ करते हैं जिससे शादी के बंधन में बंधने का अनुभव मिलता है। मन कृषि और पशुपालन का काम करते हैं जबकि श्रद्धा माँ बनने के लिए तैयार होती है। श्रद्धा का एक बेटा होता है, लेकिन उसके जन्म के बाद मां अपने बेटे को समय नहीं दे पाती है। मन को लगता है कि श्रद्धा अब उनसे प्यार नहीं करती है जिससे मन श्रद्धा को छोड़ देते हैं। फिर मन इड़ा से मिलता है और उससे प्यार करने लगता है। लेकिन जब मन इड़ा से ज़ोर-जबरदस्ती करते हैं तो इड़ा की प्रजा उनके विरोध में होती है और मन को पीट देती है। श्रद्धा मन को ढूंढती हुई उसे इड़ा के राजमहल में अपने बच्चे मनु के साथ मिलती है। श्रद्धा मनु को पाकर बहुत खुश हो जाती है और गाती हुई अपनी खुशी व्यक्त करती है। मन को लगता है कि उन्होंने गलत किया है और वह श्रद्धा और इड़ा को छोड़कर दूसरे जगह चला जाता है। श्रद्धा अपने पुत्र को इड़ा के पास छोड़कर मनु को खोजने जाती है और अंतत: दोनों मिलते हैं।

Tumul Kolahal Kalah Me

6. तुमुल कोलाहल कहल में

तुमुल कोलाहल कलह में
मैं हृदय की बात रे मन !

प्रस्तुत पंक्तियाँ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य ‘कामायनी’ के निर्वेद सर्ग से ली गई हैं। श्रद्धा मन इस अत्यंत कोलाहल में अपने हृदय की बात की तरह महसूस करती है और मन को पाकर कहती है।

विकल होकर नित्य चंचल,
खोजती जब नींद के पल
चेतना थक सी रही तब,
मैं मलय की वात रे मन !

प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावाद के प्रमुख कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य ‘कामायनी’ के निर्वेद सर्ग से ली गई हैं। इन पंक्तियों में श्रद्धा नारी के महत्व को पुरुष के जीवन में रेखांकित करते हुए कहती हैं। पुरुष जब थक जाता है तब उसे शांति और विश्राम की तलाश होती है। इस स्थिति में, श्रद्धा नारी के हृदय के समान शांति और आराम देती है। इस से यह स्पष्ट होता है कि मन चंचल होता है और मन की चंचलता के कारण शरीर थक जाता है, लेकिन श्रद्धा के माध्यम से हम अपने मन को शांत करके आराम पा सकते हैं।

चिर-विषाद विलीन मन की
इस व्यथा के तिमिर वन की
मैं उषा सी ज्योति रेखा,
कुसुम विकसित प्रात रे मन !

प्रस्तुत पंक्तियाँ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य ‘कामायनी’ के निर्वेद सर्ग से ली गई हैं। इन पंक्तियों में श्रद्धा नारी के महत्व को पुरुष के जीवन में रेखांकित करते हुए कहती हैं कि मन अंधकार के दुख के वन में दीर्घ काल से दबा हुआ है, लेकिन श्रद्धा उसमें सुबह की किरणों की तरह उजाला भरती है। वह अंधकार से पूर्ण वन में पुष्प से भरे हुए सुबह के समान होती हैं।

जहां मरु ज्वाला धधकती
चातकी कन को तरसती
उन्हीं जीवन घाटियों की
मैं सरस बरसात रे मन !

प्रस्तुत पंक्तियाँ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य ‘कामायनी’ के निर्वेद सर्ग से ली गई हैं। इन पंक्तियों में मनुष्य के जीवन में महिलाओं के महत्व को रेखांकित किया गया है। हे मन्! उस मरुस्थल में, जहां चातकी पानी की बूंदों का तरसाना होता है, तू अंधकार से भरा हुआ है। मैं जीवन की घाटी में सरस बरसात की तरह हूँ। कवि कहते हैं कि जब मनुष्य जीवन कष्टों से दुखी होता है, तब आनंद रूपी बारिश ही उसके दुख को शांति देती है, जैसे चातकी को पानी की बूंदें शांति प्रदान करती हैं।

पवन की प्राचीर में रुक
जला जीवन जा रहा झुक
इस झुलसते विश्व-वन की
मैं कुसुम ऋतु रात रे मन !

प्रस्तुत पंक्तियाँ में कवि ने बताया है कि जब मनुष्य अपने जीवन में कठिन समयों से गुजरता है, जब वह अपने संघर्ष के सामने हार मान लेता है, तब भी नारी उसके जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती है। वह उसके दुखों में सहायता देती है और उसे अपने जीवन का सार्थकता दर्शाती है।

चिर निराशा नीरधर से
प्रतिच्छायित अश्रु सर में
मधुप मुखर मरंद मकुलित
मैं सजल जलजात रे मन !

अरे मन! जब अंधेरे घने बादलों से घिरे हुए हमारे मन के ऊपर दुख के आँसू बरसते हैं, उस समय मैं करुणा से भरी कमल की तरह हूँ, जिसमें भंवरे बौँदों की तरह आते जाते रहते हैं।

Tumul Kolahal Kalah Me

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