इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 12 हिन्दी के पद्य भाग के पाठ ग्यारह ‘प्यारे नन्हें बेटे को (Pyare Nanhen Bete Ko Class 12th Hindi)’ को पढ़ेंगे।
11. प्यारे नन्हें बेटे को
कवि- विनोद कुमार शुक्ल
लेखक-परिचय
जन्म : 1 जनवरी 1937
जन्मस्थान : राजनांदगाँव (छतीसगढ़)
वृति: इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में एसोशिएट प्रोफेसर।
सम्मान: रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (1992), दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान (1997), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1999)
कृतियाँ: लगभग जयहिंद (प्रथम कविता संग्रह), वह आदमी नया गरम कोट पहनकर चला गया विचार की तरह (1981), सबकुछ होना बचा
रहेगा (1992), अतिरिक्त नहीं (2001), नौकर का कमीज, पेड़ पर कमरा
प्यारे नन्हें बेटे को
कंधे पर बैठा
मैं दादा से बड़ा हो गया
सुनना यह |
प्यारी बिटिया से पूछंगा–
बतलाओ आसपास
कहाँ-कहाँ लोहा है
चिमटा,करकुल सिगड़ी
समसी दरवाजे की साँकल कब्जे
खिला दरवाजे में फँसा हआ
वह बोलेगी झटपट
प्रस्तुत पंक्तियाँ विनोद कुमार शुक्ल द्वारा रचित कविता ‘प्यारे नन्हें बेटो को’ से कुछ पंक्तियाँ। इस कविता में कवि अपने नन्हें बेटे को कंधे पर बैठाते हुए उससे पूछता है कि कहाँ होता है लोहा। उत्तर में बेटी झटपट बोलती है कि लोहा चिमटा, करछुल, लोहे की कड़ाही, सँड़सी, दरवाजे की जंजीर और दरवाजे में लगे कब्जे में होता है और दरवाजे में लगी मोटी कांटी में भी होता है। बेटा फिर बताता है कि वह अब दादा से भी बड़ा हो गया है।
रुककर वह फिर याद करेगी।
एक तार लोहे का लंबा
लकड़ी के दो खंबों पर
तना बधा हआ बाहर
सुख रही जिस पर
भैय्या की गीली चडडी !
फिर-एक सैफटी पिन साइकिल पूरी |
आसपास वह ध्यान करेगी
सोचेगी
दुबली पतली पर
हरकत में तेजी कि
कितनी जल्दी
जान जाए वह
आसपास कहाँ-कहाँ लोहा है |
प्रस्तुत पंक्तियाँ विनोद कुमार शुक्ल द्वारा रचित कविता ‘प्यारे नन्हें बेटो को’ से ली गई हैं। कवि अपनी प्यारी बेटी से पूछता है कि आसपास लोहा कहाँ है और वह कुछ सोचकर जवाब देती है। उसने बताया कि लकड़ी के दो खंभों पर तना बंधा तार लोहे का है जिस पर नन्हें भाई के गीले कपड़े सूख रहे हैं। इसके अलावा सेफ़्टी पिन और पूरी साईकिल लोहे की बनी है। फिर वह अपने आसपास ध्यान से देखती है और जल्दी से जान जाती है कि आसपास लोहा कहाँ है। वह शायद शरीर से दुबली-पतली हो, लेकिन वह बहुत सजग है।
मैं याद दिलाऊँगा
जैसे सिखलाऊँगा बिटिया को
फावड़ा, कुदाली
टँगिया, बसुला, खुरपी
पास खड़ी बैलगाड़ी के
चक्के का पट्टा,
बैलों की गले में
काँसे की घंटी के अंदर
लोहे की गोली।
पत्नी याद दिलाएगी
जैसे समझाएगी बिटिया को
बाल्टी सामने कुएं में लगी लोहे की घिर्री
छत्ते की काड़ी-डंडी और घमेला
हँसिया चाकू और
भिलाई बलाडिला
जगह जगह लोहे के टीले |
प्रस्तुत पंक्तियाँ विनोद कुमार शुक्ल द्वारा रचित कविता ‘प्यारे नन्हें बेटो को’ से ली गई यह पंक्तियाँ। इसमें कवि अपनी प्यारी बेटी को याद दिलाता है कि फावड़ा, कुदाल, टंगीया, बसुला और खुरपी सब लोहा है। वह बताता है कि पास खड़ी बैलगाड़ी के चक्के का पट्टा और बैलों के गले में काँसे की घंटी के अंदर लोहे की गोली है।
फिर लेखक की पत्नी बताती है कि जैसे अपनी प्यारी बेटी को समझाती है कि बाल्टी और सामने के कुएँ में लगी लोहे की घिरनी, छते की काड़ी, डंडी और घमेला, हंसियाँ, चाकू सब लोहा है। भिलाई और बलाडिला में जगह-जगह लोहे के टीले हैं।
इसी तरह
घर भर मिलकर
धीरे धीरे सोच सोचकर
एक साथ ढूँढेंगे
कहाँ-कहाँ लोहा है-
इस घटना से
उस घटना तक
कि हर वो आदमी
जो मेहनतकश
लोहा है
प्रस्तुत पंक्तियाँ विनोद कुमार शुक्ल द्वारा रचित कविता ”प्यारे नन्हें बेटो को” से ली गई हैं जिसमें कवि को अनुभव होता है कि लोहा कहाँ-कहाँ है। कवि को लगता है कि लोहा हर कदम पर फैला हुआ है। उसे अनुभव होता है कि हर उस व्यक्ति में जो परिश्रम के सहारे अपनी जीविका चलाता है, लोहा होता है।
हर वो औरत
दबी सतायी
बोझ उठाने वाली, लोहा !
जल्दी जल्दी मेरे कंधे से
ऊंचा हो लड़का
लड़की का हो दुल्हा प्यारा
उस घटना तक
कि हर वो आदमी
जो मेहनतकश
लोहा है
हर वो औरत
दबी सतायी
बोझ उठाने वाली लोहा |
प्रस्तुत पंक्तियाँ विनोद कुमार शुक्ल द्वारा रचित कविता ‘प्यारे नन्हें बेटो को’ से ली गई कुछ पंक्तियाँ, जिसमें कवि अपनी प्यारी बेटी से बात करते हुए बताते हैं कि हर वह औरत जो अत्याचार सहती है और दुखों का बोझ उठा रही है, उसे लोहा कहा जा सकता है। यहाँ कवि का एक और विचार है कि वह अपनी बेटी को जल्द से जल्द बड़ा होते देखना चाहता है जिससे उसे एक प्यारा दूल्हा मिल सके और उसकी शादी हो सके। उसे यह भी महसूस होता है कि हर वो व्यक्ति जो परिश्रम करके अपनी जीविका चलाता है, उसे भी लोहा कहा जा सकता है। जो सताता है, वह भी लोहा है।
Pyare Nanhen Bete Ko
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