BSEB Class 10th Science Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन | Prakritik Sansadhano ka Prabandhan Class 10th Solutions

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 10 के विज्ञान के पाठ 16 प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन (Prakritik Sansadhano ka Prabandhan Class 10th Solutions) को पढ़ेंगे। 

Prakritik Sansadhano ka Prabandhan Class 10th Solutions

प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन

हमारे चारों ओर की भूमि, जल और वायु से मिलकर बना यह पर्यावरण, हमें प्रकृति से विरासत में मिला है जिसे सहेज कर रखना हम सबों का दायित्व है। अनेक राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय नियम व कानून पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए बने हैं। अनेक राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ भी हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखने में कार्यरत हैं। जैसे- क्योटो प्रोटोकॉल तथा उत्सर्जन मानदंड

क्योटो प्रोटोकॉल- 1997 में जापान के क्योटो शहर में भूमंडलीय ताप वृद्धि रोकने के लिए एक अंतराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में विश्व के 141 देशों ने भाग लिया। इस क्योटो प्रोटोकॉल के अनुसार सभी औद्योगिक देशों को 2008 से 2012 तक के पाँच वर्षों की अवधि में 6 प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के स्तर में 1990 के स्तर से कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

Prakritik Sansadhano ka Prabandhan Class 10th Solutions

उत्सर्जन संबंधी मानदंड
वाहनों से उत्सर्जित धुएँ में कार्बन मोनोक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन तथा अन्य हानिकारक पदार्थ होते हैं। 1988 में इन प्रदूषकों को नियंत्रित करने हेतु सर्वप्रथम यूरोप में उत्सर्जन संबंधी मानदंड (यूरो-Ι, यूरो-ΙΙ) लागू किया गया।
इसी प्रकार, भारत में भी वाहनों की भारी संख्या और अधिक यातायात के कारण बढ़ते प्रदुषण को कम करने के लिए उत्सर्जन संबंधी मानदंड को सख्त कर लागू कर दिया जाता है। 2005 में भारत में स्टेज- ΙΙ लागू किया गया। वर्तमान में भारत में स्‍टेज- VI लागू है।

गंगा कार्यान्वयन योजना
गंगा कार्यान्वयन योजना की घोषणा 1986 में हुई थी जिसके लिए 300 करोड़ रुपयों से भी अधिक का प्रावधान था और ऋषिकेश से कालकाता तक गंगा नदी को स्वच्छ बनाने की योजना थी।

वन का महत्त्व- वनों का निम्नलिखित महत्व है।
1. वन पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ मनुष्यों की मूल आवश्यकताओं, जैसे आवास निर्माण सामग्री, ईंधन, जल तथा भोजन का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप् से आपूर्ति करता है।
2. पेड़-पौधों की जड़े मिट्टी के कणों को बाँधकर रखती हैं, जिससे तेज वर्षा तथा वायु के झोकों से होनेवाला भूमि अपरदन रूकता है। वन मिट्टी के कटाव को रोकने में सहायक होता है।
3. यहां जल चक्र के पूर्ण होने में वनों का महत्वपूर्ण योगदान है।
4. वनों द्वारा वर्षा की मात्रा में वृद्धि होती है।
5. वनों द्वारा वातावरण के ताप में कमी आती है।
6. वनों के ह्रास से कई प्रकार के प्रजातियाँ लुप्त हो जाती है।
7. वनों से हमें दुर्लभ औसधियाँ, पौधे, रेजिन, रबर, तेल आदि मिलते है।
8. वनों से पशुओं के लिए चारा उपलब्ध होता है।
9. वनों में पेड़ों से गिरने वाले वाले पत्ते मिटटी में सड़कर ह्युमस उत्पन्न करते है जिससे मिट्टी की उर्वरा सकती बढ़ती है।

वन प्रबंधन के प्रयास
भारत सरकार ने राष्ट्रीय वन निति बनाकर वैन संरक्षण के प्रयास किये हैं।
1. बचे हुए वन क्षेत्रों का संरक्षण
2. वनों की कटाई को विवेक पूर्ण बनाना
3. बंजर तथा परती भूमि पर सघन वृक्षारोपण के कायर्क्रम का संचालन
4. जनता में जागरूकता पैदा कर वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित करना
5. ग्रामीण क्षेत्रों में बायोगैस संयंत्र लगाने को प्रोत्साहन जिसमें जलावन के लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई पर रोक लग सके।
6. रसोई गैस के कनेक्शन उपलब्ध कराना।
7. बांधों के तटबंधों तथा आसपास के क्षेत्र को वनाच्छादित बनाना।
8. सवयंसेवी संस्थानों को प्रोत्साहन आदि।

टिहरी बांध परियोजना- टिहरी बांध का निर्माण उत्तराखंड के टिहरी जिले के भगीरथी तथा भिलंगना नदियों के संगम के निचे गंगा नदी पर किया गया है।

Prakritik Sansadhano ka Prabandhan Class 10th Solutions

टिहरी बांध निर्माण का उद्देश्य–
1. बिजली का उत्पादन
2. पशिचमी उत्तर प्रदेश के 2 लाख 70 हजार हेक्टेअर भूमि की सिंचाई
3. दिल्ली महानगर को जल की आपूर्ति

सौर ऊर्जा- सूर्य ऊर्जा का निरंतर स्रोत है सूर्य की उष्मा एवं प्रकाश से प्रचुर मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है तथा सौर ऊर्जा से विभिन्न प्रकार प्रकार के उपयोगी कार्य किये जाते है। जैसे –
1. सौर कुकर से खाद्य पदार्थो को पकने में
2. सौर्य जल ऊष्मक से जल गर्म करने में
3.सौर्य शक्ति यंत्रण से, विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करने में

पवन ऊर्जा- पवन ऊर्जा का उपयोग नाव चलने में किया जाता है। पवन ऊर्जा का उपयोग कई औद्योगिक कार्यों के लिए भी किया जाता है। डेनमार्क को पवनों का देश कहा जाता है। भारत विश्‍व का पाँचवा पवन उत्‍पादक देश है।

पवन ऊर्जा का उपयोग –
1. अनाज के पिसाई के लिए पवन चक्की
2. जल पम्प चलाने के लिए पवन चक्की

पृष्ठ : 302 )

पाठ में दिए हुए प्रश्न तथा उनक उत्तर

प्रश्न 1. पर्यावरण मित्र बनने के लिए आप अपनी आदतों में कौन-से परिवर्तन ला सकते हैं ?
उत्तरयदि हम तीन ‘R’ के प्रयोग के आधार पर काम करें तो पर्यावरण मित्र बन सकते हैं । इन तरीकों के लिए अपनी आदतों को बदलना होगा ।

प्रश्न 2. संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि के उद्देश्य की परियोजना के क्या लाभ हो सकते हैं ?
उत्तरसंसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि के उद्देश्य की परियोजना से यह लाभ हो सकता है कि बिना उत्तरदायित्व के अधिकाधिक मुनाफ़ा प्राप्त किया जा सकता है।

 प्रश्न 3. यह लाभ, लंबी अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई परियोजनाओं के लाभ से किस प्रकार भिन्न है ।

उत्तर :

प्रश्न 4. क्या आपके विचार में संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए ? संसाधनों के समान वितरण के विरुद्ध कौन-कौन-सी ताकतें कार्य कर सकती हैं ?
उत्तर – मेरे विचार में संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए क्योंकि धरती हम सबकी है । इस पर रहनेवाले सभी प्राणियों का संसाधनों पर समान अधिकार है। संसाधनों का अर्थ उनका दोहन अथवा शोषण नहीं है । यदि कोई इन संसाधनों का अत्यधिक उपयोग कर रहा है तो इसका मतलब है कि इसकी कमी किसी को जरूर डझेलनी पड़ रही होगी । इससे पर्यावरण को काफी क्षति पहुँचती है । लेकिन मुट्ठी भर अमीर और शक्तिशाली लोग ही इसका लाभ उठाते हैं । वे इसका समान वितरण नहीं चाहते ।

( पृष्ठ: 306)

प्रश्न 1. हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए ?
उत्तर—वन जैव विविधता के विशिष्ट स्थल हैं । जैव विविधता का एक आधार उस क्षेत्र में पाई जानेवाली विभिन्न स्पीशीज की संख्या है । परंतु जीवों के विभिन्न स्वरूप (जीवाणु, कवक, फर्न, पुष्पी, पादप, सूत्रकृमि, कीट, पक्षी, सरीसृप इत्यादि) भी महत्त्वपूर्ण हैं। वंशगत जैव विविधता को संरक्षित करने का प्रयास प्राकृतिक संरक्षण के मुख्य उद्देश्यों में से एक है। प्रयोगों तथा वस्तुस्थिति के अध्ययन से हमें पता चलता है कि विविधता के नष्ट होने से पारिस्थितिक स्थायित्व भी नष्ट हो सकता है ।.

प्रश्न 2. संरक्षण के लिए कुछ उपाय सुझाइए ।
उत्तर – वनों की प्राकृतिक छवि में मनुष्य का हस्तक्षेप बहुत अधिक है । हमें इस हस्तक्षेप की प्रकृति एवं सीमा को नियंत्रित करना होगा। वन संसाधनों का उपयोग इस प्रकार करना होगा जो पर्यावरण एवं विकास दोनों के हित में हो । अर्थात् जब पर्यावरण अथवा वन संरक्षित किये जाएँ, उनके सुनियोजित उपयोग का लाभ स्थानीय निवासियों को मिलना चाहिए । यह विकेंद्रीकरण की एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें आर्थिक विकास एवं पारिस्थितिक संरक्षण दोनों साथ-साथ चल सकते हैं। आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए पर्यावरण का संरक्षण जरूरी है ।

Prakritik Sansadhano ka Prabandhan Class 10th Solutions

(पृष्ठ : 310 )

प्रश्न 1. अपने निवास क्षेत्र के आस-पास जल संग्रहण की परंपरागत पद्धति का पता लगाइए।
उत्तर जल संग्रहण भारत की बहुत पुरानी संकल्पना है, जैसे— राजस्थान में खादिन, बड़े पात्र एवं नाड़ी, महाराष्ट्र के बंधारस एवं ताल; मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में बांधिस, बिहार में आहर तथा पइन, हिमाचल प्रदेश में कुल्ह, जम्मू के काँदी क्षेत्र में तालाब तथा तामिलनाडु में टैंक, केरल में सुरंगम, कर्नाटक में कट्टा इत्यादि । प्राचीन जल संग्रहण तथा जल परिवहन संरचनाएँ आज भी उपयोग में हैं । जल संग्रहण तकनीक स्थानीय होता है तथा इसका लाभ भी स्थानीय क्षेत्र को ही होता है । खादिन को ढोरा भी कहते हैं । यह पद्धति जमीन पर बहते हुए पानी को कृषि में उपयोग करने के लिए विकसित की गई थी। इसकी प्रमुख विशेषता यह कि इससे निचली पहाड़ी की ढलानों को लाभ हो । इसमें पानी को अधिक मात्रा में बाहर निकालकर फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देना है ।

प्रश्न 2. इस पद्धति की पेयजल व्यवस्था (पर्वतीय क्षेत्र, मैदानी क्षेत्र अथवा पठारी क्षेत्र) से तुलना कीजिए ।
उत्तरपर्वतीय क्षेत्रों में जल संग्रहण और मैदानी क्षेत्रों (पठारी क्षेत्रों) में अंतर है। जैसे हिमाचल प्रदेश में करीब चार सौ वर्ष पहले नहर सिंचाई की व्यवस्था की गई थी, जिसे कुल्ह के नाम से जाना जाता था। नदियों में बहनेवाले पानी को छोटी-छोटी नालियों द्वारा पहाड़ी के निचले भांग तक पहुँचाया जाता था । इसका प्रबंधन गाँव के लोग खुद करते थे। कृषि के समय दूरस्थ गाँव को पानी दिया जाता था । कुल्ह की देख-रेख के लिए तथा प्रबंधन के लिए चार-पाँच लोग को रखते थे । उनके लिए वेतन की व्यवस्था करते थे। इससे लाभ केवल कृषि को ही नहीं था बल्कि इस जल का भूमि में अंतः स्रवण भी होता रहता था ।

प्रश्न 3. अपने क्षेत्र में जल के स्रोत का पता लगाइए। क्या इस स्रोत से प्राप्त जल उस क्षेत्र के सभी निवासियों को उपलब्ध है ।
उत्तर – हमारे क्षेत्र में जल का मुख्य स्रोत कुआँ तथा नगर-निगम द्वारा आपूर्ति जल है। गर्मी के दिनों में कभी-कभी भूमिगत जल का स्तर इतना नीचे चला जाता है कि पेयजल की कमी होने लगती है । इससे उस क्षेत्र के निवासियों को जल की उपलब्धता संभव नहीं हो पाती या कम हो पाती है ।

Prakritik Sansadhano ka Prabandhan Class 10th Solutions

अभ्यास : प्रश्न तथा उनके उत्तर

प्रश्न 1. अपने घर को पर्यावरण-मित्र बनाने के लिए आप उसमें कौन-कौन- से परिवर्तन सुझा सकते हैं ?
उत्तर—हम पर्यावरण को निम्नलिखित प्रभावी ढंग से सुरक्षित रख सकते हैं : (i) कम-से-कम वस्तुओं का उपयोग करना बिजली के पंखे तथा बल्ब का स्विच बंद करके विद्युत का अपव्यय को रोक सकते हैं तथा पानी टपकनेवाले नल की मरम्मत कराकर जल की बचत कर सकते हैं।
(ii) प्लास्टिक, काँच तथा धातु की वस्तुओं को पुनःचक्रण करना । ऐसे पदार्थों के पुनःचक्रण द्वारा दूसरी उपयोगी वस्तुओं का निर्माण हो ।
(iii) वस्तु का बार-बार उपयोग करना प्रयुक्त कागज तथा लिफाफों को फेंकने के बजाय इसका पुनः उपयोग कर सकते हैं ।

प्रश्न 2. क्या आप अपने विद्यालय में कुछ परिवर्तन सुझा सकते हैं, जिनसे इसे पर्यानुकूलित बनाया जा सके ?
उत्तरहम तीन R अर्थात् कम उपयोग करना, पुनःचक्रण तथा पुनः उपयोग को कर अपने विद्यालय को पर्यानुकूलित बना सकते हैं ।

प्रश्न 3. इस अध्याय में हमने देखा कि जव हम वन एवं वन्य जंतुओं की बात करते हैं तो चार मुख्य दावेदार सामने आते हैं । इनमें से किसे वन उत्पाद प्रबंधन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिए जा सकते हैं ? आप ऐसा क्यों सोचते हैं ?
उत्तरजब हम वन एवं वन्य जंतुओं की बात करते हैं तो चार मुख्य दावेदार समाने आते हैं जैसे वन के अंदर एवं इसके निकट रहनेवाले लोग, सरकार का वन विभाग, उद्योगपति तथा वन्य जीवन एवं प्रकृतिप्रेमी । मेरे विचार में उत्पादों के प्रबंधन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिये जाने के लिए स्थानीय लोग सर्वाधिक उपयुक्त हैं। क्योंकि स्थानीय “लोग वन का संपोषित तरीके से उपयोग करते हैं । सदियों से ये स्थानीय लोग इन वनों का उपयोग करते आ रहे हैं । साथ ही इन्होंने ऐसी पद्धतियों का भी विकास किया है जिससे संपोपण होता है तथा आनेवाली पीढ़ियों के लिए उत्पाद बचे रहें । इनके अतिरिक्त गड़ेरियों द्वारा वनों के पारंपरिक उपयोग ने वन के पर्यावरण संतुलन को भी सुनिश्चित किया है। वनों के प्रबंधन से स्थानीय लोगों को दूर रखने का हानिकारक प्रभाव वन की क्षति के रूप में सामने आ सकता है । वास्तव में वन संसाधनों का उपयोग इस प्रकार करना होगा कि यह पर्यावरण एवं विकास दोनों के हित में हो तथा नियंत्रण का फायदा स्थानीय लोगों को मिले। यह विकेंद्रीकरण की एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें आर्थिक विकास तथा पारिस्थितक संरक्षण दोनों साथ-साथ चल सकते हैं ।

प्रश्न 4. अकेले व्यक्ति के रूप में आप निम्न के प्रबंधन में क्या योगदान दे सकते : (a) वन एवं वन्य जंतु (b) जल संसाधन (c) कोयला एवं पेट्रोलियम ?
उत्तर- (a) वन एवं वन्य जंतु — स्थानीय लोगों को यदि वनों से वंचित रखा जायगा तो वनों का प्रबंधन संभव नहीं है । इसका उदाहरण अराबारी वन क्षेत्र है, जहाँ एक बड़े क्षेत्र में वनों का पुनर्भरण संभव हो सका है। मैं लोगों की सक्रिय भागीदारी को
(iv) अनावश्यक पंखे तथा बल्ब को बंद करके बिजली बचायी है।
(v) खाली दवा की बोतलों को कुछ सामान रखकर उसका उपयोग किया है ।
(b) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव के और बढ़ाया है :
(i) ‘ट्यूबलाइट के स्थान पर बल्ब का उपयोग किया।
(ii) अपना भोजन फेंका ।
(iii) मैं तो सी गया लेकिन TV चलता रहा ।
(iv) हाथ धोते समय अधिक पानी खर्च किया ।
(v) कमरे को गर्म रखने के लिए हीटर का प्रयोग किया ।

प्रश्न 7. इस अध्याय में उठाई गई समस्याओं के आधार पर आप अपनी जीवन- शैली में क्या परिवर्तन लाना चाहेंगे जिससे हमारे संसाधनों के संपोषण को प्रोत्साहन मिल सके ?
उत्तरहम अपनी जीवन शैली में तीन ‘R’ की संकल्पना को लागू करना चाहेंगे जिसका अर्थ होता है कम उपयोग करना, पुनःचक्रण तथा पुनः उपयोग। इससे हमारे संसाधनों के संपोषण को प्रोत्साहन मिलेगा ।

Prakritik Sansadhano ka Prabandhan Class 10th Solutions

Read More – click here
YouTube Video – click here

Leave a Comment