प्रगीत और समाज का संपूर्ण व्‍याख्‍या | Prageet Or Samaj 12th Hindi Solution Notes

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 12 हिन्‍दी के गद्य भाग के पाठ नौ ‘प्रगीत और समाज (Prageet Or Samaj 12th Hindi Solution Notes)’ को पढ़ेंगे।

Prageet Or Samaj 12th Hindi

9. प्रगीत और समाज
लेखक- नामवर सिंह

लेखक परिचय
जन्‍म- 28 जूलाई 1927
जन्‍म-स्‍थान : जीअनपुर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश।
माता- वागेश्‍वरी देवी, पिता- नागर सिंह (शिक्षक)

शिक्षा- प्राथमिक शिक्षा- उत्तर प्रदेश के आवाजापुर और कमालपुर गाँवों में, हीवेट क्षत्रिय स्‍कूल, बनारस से हाई स्‍कूल, उदय प्रताप कॉलेज
बनारस से इंटर, बी.ए. और
एम.ए. बनारस हिन्‍दु विश्‍वविद्यालय से किया।
सम्‍मान- 1971 में ‘कविता के नए प्रतिमान’ पर साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार।

कृतियाँ- दूसरी परंपरा की खोज, वाद विवाद संवाद, कहना न होगा, पृथ्‍वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, कविता के नए प्रतिमान।

पाठ का सारांश

प्रस्तुत निबंध में नामवर सिंह के गीत के उदय के ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों की जाँच की जाती है। कविता से संबंधित प्रश्न पर समाज का तीव्र दबाव महसूस हो रहा है। प्रगीत काव्य समाजशास्त्रीय विश्लेषण और सामाजिक व्याख्या के लिए सबसे कठिन चुनौती है। लेकिन प्रगीतधर्मी कविताएं सामाजिक अभिव्यक्ति के लिए पर्याप्त नहीं हैं। स्वयं आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काव्य सिद्धांत के आदर्श भी प्रबंधकाव्य ही होते हैं, क्योंकि प्रबंधकाव्य में मानव जीवन का एक पूर्ण दृश्य होता है।

मुक्तिबोध की कविताएं नई कविता की एक ऐसी प्रवृत्ति को दर्शाती हैं जो या तो समाज से निरपेक्ष होती हैं या फिर जिनकी सामाजिक अर्थव्यवस्था सीमित होती है। इसलिए मुक्तिबोध की कविताओं की आवश्यकता व्यापक काव्य सिद्धांत की स्थापना करने के लिए थी। मुक्तिबोध ने केवल लंबी कविताओं को ही नहीं लिखा था, बल्कि उनकी अनेक कविताएं छोटी भी हैं जो कम सार्थक नहीं हैं। मुक्तिबोध का समूचा काव्य मूलतः आत्मपरक है। उनकी रचना विन्यास में कहीं नाट्यधर्मी है, कहीं नाटकीय एकालाप है, कहीं नाट्यकीय प्रगीत है और कहीं शुद्ध प्रगीत भी है। आत्मपरकता और भावमयता मुक्तिबोध की शक्तियों में से हैं जो उनकी प्रत्येक कविता को गति और ऊर्जा प्रदान करती हैं।

विभिन्न कवियों द्वारा प्रगीतों का निर्माण, हमारे साहित्य के मापदंड प्रबंधकाव्यों के आधार पर बने हैं, यद्यपि हिंदी कविता का इतिहास मुख्यत: प्रगीत मुक्तको का है। कबीर, सूर, तुलसी, मीरा, रैदास आदि संतों ने प्रायः गेय काव्य ही लिखा है। अगर विद्यापति को हिन्दी का पहला कवि माना जाए तो हिंदी कविता का उदय गीत से हुआ, जिसका विकास आगे चलकर संतों और भक्तों की वाणी में हुआ।

समाजवादी कविता अकेलेपन के बाद कुछ लोगों ने जनता की स्थिति के ऊपर ध्यान केंद्रित करते हुए कविता को समाजसेवा का जरिया बनाया जिससे कविता सामाजिक बन गई। बाद में नए कवि अपनी कविताओं में विभिन्न हृदयगत स्थितियों का वर्णन करने लगे। इसके बाद, एक ऐसा दौर भी आया जब कुछ कवि ने अपने हृदय के दरवाजे को खोल दिया और अभिव्यक्ति के जरिये सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ढेर सारी सामाजिक कविताएं लिखीं, लेकिन यह दौर जल्द ही समाप्त हो गया।

ई प्रगतिशील का उदय युवा पीढ़ी के कवियों द्वारा हुआ और कविता के क्षेत्र में कुछ परिवर्तन हुए। आज कवि को अपने अंदर झांकने या बाहरी यथार्थ सामना करने में कोई हिचक नहीं है। उसकी नजर छोटी-छोटी स्थिति वस्तु आदि पर है। इसी प्रकार उसके अंदर छोटी-छोटी उठने वाली लहर को पकड़कर शब्दों में बांध लेने का उत्साह भी है। कवि और समाज के रिश्तों के बीच संवाद का प्रयास कर रहा है। लेकिन यह रोमांटिक गीतों को समाप्त करने या व्यक्तित्व कविता को बढ़ाने का प्रयास नहीं है। बल्कि इन कविताओं से इस बात की पुष्टि होती है कि मिथक के माध्यम से अधिक शक्ति है और कभी-कभी ठंडे स्वर का प्रभाव गर्म भी होता है। यह नए ढंग की प्रगति के उदय का संकेत है!

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