इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 10 के विज्ञान के पाठ 7 नियंत्रण और समन्वय (Niyantran aur Samanvay Class 10th Solutions) को पढ़ेंगे।
7. नियंत्रण और समन्वय
जीवों में किसी कार्य को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए अंगतंत्रों (जैसे, पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, उत्सर्जन तंत्र, परिसंचरण तंत्र आदि।) के विभिन्न अंगों के बीच समन्वय (ताल-मेल) स्थापित करने के लिए नियंत्रण की आवश्यकता होती है। बिना नियंत्रण के अंग व्यवस्थित ढंग से कार्य नहीं कर सकेंगे। इसलिए जीवों के विभिन्न अंगों और अंगतंत्रों के बीच समन्वय एवं नियंत्रण उनके कुशल कार्यों के लिए अनिवार्य है।
एककोशीकीय जीवों जैसे क्लैमाइडोमोनास, अमीबा आदि में सभी जैव क्रियाओं का संचालन, समन्वय तथा उनका नियंत्रण एक कोशिका के द्वारा होता है।
बहुकोशीकीय जंतुओं में नियंत्रण और समन्वय के लिए अलग-अलग अंग एवं अंगतंत्र होते हैं।
अनुवर्तन- पौधों द्वारा बाह्य उद्दीपनों को ग्रहण कर उसके अनुसार गति को अनुवर्तन या अनुवर्तिनी गति कहते हैं।
अनुवर्तन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं।
1. प्रकाश.अनुवर्तन- पौधे के अंगों द्वारा प्रकाश की ओर गति को प्रकाशानुवर्तन कहते हैं।
2. गुरुत्वानुवर्तन- पौधे के अंगों द्वारा गुरुत्वाकर्षण की दिशा में गति को गुरुत्वानुवर्तन कहते हैं।
3. जलानुवर्तन- पौधे के अंगों द्वारा जल की ओर गति को जलानुवर्तन कहते हैं।
पादप हार्मोन-पौधों की जैविक क्रियाओं के बीच समन्वय स्थापित करनेवाले रासायनिक पदार्थ को पादप हार्मोन या फाइटोहॉर्मोन कहते हैं।
रासायनिक संघटक तथा कार्यविधि के आधार पर पादप हार्मोन को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है- 1. ऑक्जिन, 2. जिबरेलिन्स, 3. साइटोकाइनिन, 4. ऐबसिसिक एसिड और 5. एथिलीन।
ऑक्जिन के कार्य- यह कोशिका विभाजन और कोशिका दिर्घन में सहायक होता है। ऑक्जिन तने के वृद्धि में भी सहायक होते हैं। यह प्रायः बीजरहित फलों के उत्पादन में भी सहायक होते हैं। यह पौधों के ऊपरी भाग में पाया जाता है। यह प्रकाशानुवर्तन के लिए उतरदयी है।
जिबरेलिन्स के कार्य- यह पौधे के स्तंभ की लंबाई में वृद्धि करते हैं। इनके उपयोग से बड़े आकार के फलों एवं फूलों का उत्पादन किया जाता है। बीजरहित फलों के उत्पादन में ये ऑक्जिन की तरह सहायक होते हैं।
साइटोकाइनिन के कार्य-ये पौधों में जीर्णता को रोकते हैं एवं पर्णहरित को काफी समय तक नष्ट नहीं होने देते हैं। इससे पित्तयाँ अधिक समय तक हरी और ताजी बनी रहती है।
ऐबसिसिक एसिड के कार्य- यह ऐसा रासायनिक यौगिक है, जिसे किसी भी पौधे पर छिड़कने पर शीघ्र ही पित्तयों का विलगन हो जाता है। यह पित्तयों के मुरझाने और विलगन होने में सहायक होते हैं।
एथिलीन के कार्य- यह पौधे के तने के अग्रभाग में बनता है और विसरित होकर फलों के पकाने में सहायता करता है। अतः इसे फल पकानेवाला हार्मोन भी कहा जाता है। कृत्रिम रूप से फलों को पकाने में इसका उपयोग किया जाता है।
जंतुओं में नियंत्रण और समन्वय
जंतुओं में विभिन्न क्रियाओं के बीच समन्वय और नियंत्रण निम्नांकित दो प्रकार के होते हैं।
1. तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय
जंतुओं के शरीर में एक विशेष प्रकार का ऊतक पाया जाता है, जिसे तंत्रिका ऊतक कहते हैं। तंत्रिका ऊतक जिस कोशिका का बना होता है, उसे तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन कहते हैं। तंत्रिका ऊतक से तंत्रिका तंत्र का निर्माण होता है। तंत्रिका तंत्र मस्तिष्क, मेरुरज्जु तथा विभिन्न प्रकार की तंत्रिकाओं से बना होता है।
तंत्रिका तंत्र आंतरिक संवेदना या उद्दीपन जैसे प्यास, भूख, रोग इत्यादि तथा बाह्य संवेदना जेसे भौतिक, रासायनिक, यांत्रिक या विद्युतीय प्रभाव को ग्रहण करने, शरीर के विभिन्न भागों में उनका चालन करने तथा संवेदनाओं का प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए अंगों को प्रेरित करने का कार्य करता है।
तंत्रिका कोशिका- यह मानव शरीर की सबसे लम्बी कोशिका होती है। प्रत्येक न्यूरॉन में एक ताराकार कोशिकाकाय होता है जिसे साइटॉन कहते हैं। साइटॉन से अनेक पतले तंतु निकले होते हैं। इन तंतुओं में से जो अधिक लंबा होता है, उसे एक्सॉन कहते हैं।
एक्सॉन बहुत लंबा होता है तो वह तंत्रिका तंतु कहलाता है। कई तंत्रिका तंतुओं के मिलने से तंत्रिका बनता है।
मनुष्य की मस्तिष्क- मस्तिष्क एक अत्यंत महŸवपूर्ण कोमल अंग है। तंत्रिका तंत्र के द्वारा शरीर की क्रियाओं के नियंत्रण और समन्वय में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका इसी की होती है। मस्तिष्क क्रेनियम नामक हड्डी से सुरक्षित रहता है। इन हड्डीयों के अंदर मस्तिष्क मेनिंजीज झिल्ली से ढ़का होता है। मेनिंजीज और मस्तिष्क के बीच सेरीब्रोस्पाइनल द्रव्य भरा होता है।
इसका औसतन आयतन लगभग 1650 उस् तथा औसत भार करीब 1.5 ाह होता है। मस्तिष्क को प्रमुख तीन भागो में बाँटा गया है-
1. अग्रमस्तिष्क
2. मध्यमस्तिष्क
3. पश्चमस्तिस्क
1. अग्रमस्तिष्क – यह दो भागों(क) प्रमस्तिष्क या सेरिब्रम तथा (ख) डाईएनसेफ़्लॉन में बाँटा होता है।
(क) प्रमस्तिष्क या सेरिब्रम- यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग है। यह मस्तिष्क का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है। यह बुद्धि और चतुराई का केंद्र है। मानव में किसी बात को सोचने-समझने की शक्ति, स्मरण शक्ति, कार्य को करने की प्रेरणा, घृणा, प्रेम,भय,हर्ष,कष्ट के अनुभव जैसी क्रियाओ का नियंत्रण और समन्वय सेरीब्रम के द्वारा ही होता है। यह मस्तिष्क के अन्य भागों के कार्यो पर भी नियंत्रण रखता है। जिस व्यक्ति में यह औसत से छोटा होता है। वह व्यक्ति मंदबुद्धि होता है।
(ख) डाइएनसेफ्लोन- यह कम या अधिक ताप के आभास तथा दर्द और रोने जैसी क्रियाओ का नियंत्रण करता है।
2. मध्यमस्तिष्क- यह संतुलन एवं आँख की पेशियों को नियंत्रित करने के केंद्र होते हैं।
3. पश्चमस्तिस्क-यह दो प्रकार के होते हैं।
(क) अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम
(ख) मस्तिष्क स्टेम
(क) अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम- अनुमस्तिष्क मुद्रा समन्वय,संतुलन, ऐक्षिक पेशियों की गति इत्यादि का नियंत्रण करता है। यदिमस्तिष्क से सेरीबेलम को नष्ट कर दिया जाय तो सामान्य ऐच्छिक गतियाँ असंभव हो जाएगी। उदहारण के लिए हाथों का परिचालन ठीक से नहीं होगा, अर्थात वस्तुओं को पकड़ने में हाथों को कठिनाई होगी। पैरों द्वारा चलना मुश्किल हो जायेगा आदि। इसका कारण यह है की हाथों और पैरों की ऐक्षिक पेशियों का नियंत्रण सेरीबेलम के नष्ट होने से समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार, बातचीत करने में कठिनाई होगी, क्यूंकि तब जीभ और जबरों की पेशियों के कार्यों का समन्वय नहीं हो पायेगा इत्यादि।
ख. मस्तिष्क स्टेम –
1. पॉन्स बैरोलाई
2. मेडुला आब्लांगेटा
3. पॉन्स बैरोलाई – यह श्वसन को नियंत्रित करता है।
4. मेडुला आब्लांगेटा- मेडुला द्वारा आवेगो का चालन मस्तिष्क और मेरुरज्जु के बीच होता है। मेडुला में अनेक तंत्रिका केंद्र होते है जो हृदय स्पंदन या हृदय की धड़कन, रक्तचाप और श्वसन गति की दर का नियंत्रण करते है। मस्तिष्क के इसी भाग द्वारा विभिन्न प्रतिवर्ती क्रियाओ जैसे खाँसना,छींकना,उलटी करना पाचक रसो के स्त्राव इत्यादि का नियंत्रण होता है।
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मस्तिष्क के कार्य
1.आवेग ग्रहण- मस्तिष्क सभी संवेदी अंगों से आवेगो को ग्रहण करता है। मस्तिष्क में ही ग्रहण किये गए आवेगों का विश्लेषण भी होता है।
2.ग्रहण किये गए आवेगों की अनुक्रिया- विभिन्न संवेदी अंगों से जो आवेग मस्तिष्क में पहुँचते हैं, विश्लेषन के बाद मस्तिष्क उनकी अनुक्रिया के लिए उचित निर्देश निर्गत करता है।
3.विभिन्न आवेगो का सहसम्बन्ध- मस्तिष्क को भिन्न-भिन्न संवेदी अंगो से एक साथ कई तरह के आवेग या संकेत प्राप्त होते है। मस्तिष्क इन आवेगों को सहसंबंधित कर विभिन्न शारीरिक कार्यों का कुशलतापूर्वक समन्वय करता है।
4.सूचनाओं का भण्डारण- मानव मस्तिष्क का यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य सूचनाओं को भंडार करना है। मस्तिष्क में विभिन्न सूचनाएं चेतना या ज्ञान के रूप में संचित रहती है। इसलिए मस्तिष्क को ‘चेतना का भंडार‘ या ‘ज्ञान का भंडार‘ कहा जाता है।
प्रतिवर्ती चाप
न्यूरोनों में आवेग का संचरण एक निश्चित पथ में होता है। इस पथ को प्रतिवर्ती चाप कहते है।
हार्मोन- ये विशिष्ट कार्बनिक यौगिक है जो बहुत कम मात्रा में अन्तः स्त्रावी ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित होते है। इनकी बहुत थोड़ी मात्रा ही विभिन्न प्रकार के शारीरिक क्रियात्मक कार्यों के नियंत्रण और समन्वय के लिए पर्याप्त होती है।
हार्मोन रक्त-परिसंचरण के माध्यम से विभिन्न अंगों तक पहुँचते हैं।
मनुष्य के अंतःस्त्रावी तंत्र
मनुष्य के शरीर में पाई जानेवाली अंतःस्त्रावी ग्रंथियाँ निम्नलिखित हैं-1. पिट्युटरी ग्रंथि, 2. थाइरॉइड ग्रंथि, 3. पाराथाइरॉइड ग्रंथि, 4. एड्रिनल ग्रंथि, 5. अग्न्याशय की लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ और 6. जनन ग्रंथियाँ : अंडाशय तथा वृषण
1. पिट्युटरी ग्रंथि-
पिट्युटरी ग्रंथि कई अन्य अंतःस्त्रावी ग्रंथियों का नियंत्रण करती है, इसलिए इसे मास्टर ग्रंथि कहते हैं।
पिट्युटरी ग्रंथि दो भागों में बँटा होता है-अग्रपिंडक और पश्चपिंडक
अग्रपिंडक द्वारा स्त्रावित वृद्धि हार्मोन है तथा पश्चपिंडक द्वारा स्त्रावित हार्मोन शरीर में जल-संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है।
2. थाइरॉइड ग्रंथि- इस ग्रंथि से थाइरॉक्सिन हार्मोण प्रवाहित होता है। इस हार्मोन में आयोडीन अधिकमात्रा में रहता है।थाइरॉक्सिन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसाके सामान्य उपापचय का नियंत्रण करता है। अतः यह शरीर के सामान्य वृद्धि, विशेषकर हड्डियों, बालों इत्यादि के विकास के लिए अनिवार्य है।
आयोडिन की कमी से थाइरॉइड ग्रंथि द्वारा बननेवाला हॉर्मोन थाइरॉक्सिन कम बनता है। इस हार्मोन के बनने की गति को बढ़ाने के प्रयास में कभी-कभी थाइडॉइड ग्रंथि बढ़ जाती है,जिसे घेघा या गलगंड कहते है। थाइरॉक्सिन की कमी से शारीरिक तथा मानसिक वृद्धि प्रभावित होती है।
3. पाराथाइरॉइड ग्रंथि- इसके द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन रक्त में कैल्सियम की मात्रा नियंत्रण करते हैं।
4. एड्रिनल ग्रंथि- एड्रीनल ग्रंथि के दो भाग होते हैं-बाहरी कॉर्टेक्स औरअंदरूनी मेडुला
एड्रीनल कॉर्टेक्स (बाहरी कॉर्टेक्स) द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन-
1. ग्लूकोकॉर्टिक्वायड्स- ये कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा-उपापचय का नियंत्रण करते हैं।
2. मिनरलोकॉर्टिक्वायड्स- इनका मुख्य कार्य वृक्क नलिकाओं द्वारा लवण के पुनः अवशोषण एवं शरीर में अन्य लवणों की मात्रा का नियंत्रण करना है। यह शरीर में जल संतुलन को भी नियंत्रित करता है।
3. लिंग हार्मोन- ये हार्मोन पेशियों तथा हड्डियों के परिवर्द्धन, बाह्यलिंगों बालों के आने का प्रतिमान एवं यौन-आचरणका नियंत्रण करते हैं।
एड्रीनल मेडुला(अंदरूनी मेडुला) द्वारा स्त्रावित हार्मोन और उसके कार्य
एड्रीनल ग्रंथि के इस भाग द्वारा निम्नलिखित दो हार्मोन स्त्रावित होते हैं-
1. एपिनेफ्रीन- अत्यधिक शारीरिक एवं मानसिक तनाव, डर, गुस्सा एवं उत्तोजना की स्थिति में इस हार्मोन का स्त्राव होता है।
2. नॉरएपिनेफ्रीन- ये समान रूप से हृदय-पेशियों की उत्तेजनशीलता एवं संकुचनशीलता को तेज करते है
5. अग्नयाशय की लैंगरहैंस की द्विपिकाएँ
इसके हार्मोन रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करते है। ग्लूकोस का मात्रा का नियंत्रण इंसुलिन नामक हार्मोन के द्वारा होता है।
6. जनन ग्रन्थियाँ ( अंडाशय तथा वृषण )
अंडाशय के द्वारा कई हार्मोन का स्त्राव होता है बालिकाओ के शरीर में यौवनावस्था में होनेवाले सभी परिवर्तन इन हार्मोन के कारण होते है।
वृष्ण द्वारा स्त्रावित हार्मोन को टेस्टोस्टेरॉन कहते हैं।
अण्डाशय द्वारा स्त्रावित हार्मोन एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्ट्रॉन है।
- मेरुरज्जु मेडुला से निकलता है।
- मस्तिष्क का अनुमस्तिष्क भाग शरीर की स्थिति तथा संतुलन का अनुरक्षण करता है।
- हृदय का धड़कना अनैच्छिक क्रिया है।
- दो न्यूरॉन के मध्य खाली स्थान को सिनेप्स कहते हैं।
- शरीर का संतुलन सेरीबेलम बनाए रखता है।
- मस्तिष्क सोचने, हृदय धड़कन और शरी के संतुलन के लिए उत्तरदायी है।
- पॉन्स, मेडुला और अनुमस्तिष्क पश्च मस्तिष्क का हिस्सा है।
- दिमाग संवेदीग्राही अंग नहीं है।
- तंत्रिका तंत्र की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को नेफ्रॉन कहते हैं।
- मानव शरीर की सबसे लंबी कोशिका न्यूरॉन है।
- मानव शरीर का औसत भार 4 ज्ञह होता है।
- मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थि यकृत या लीवर है।
- रक्त में ग्लूकोज की मात्रा का नियंत्रण इंसुलिन के द्वारा होता है।
- एड्रिनल गंथि रूधिर चाप का नियंत्रण करता है।
- ग्वाइटर या घेघा रोग आयोडीन की कमी के कारण होता है।
- अवटुग्रंथि को थायरॉक्सिन हार्मोन बनाने के लिए सोडियम, क्लोरिन तथा फॉस्फोरस की आवश्यता होती है।
- टेस्टेस्टेरॉन वृषण द्वारा स्त्रावित होता है।
- किशोरावस्था में होनेवाले शारीरिक परिवर्तन टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजेन के कारण होता है।
- पिट्युटरी ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन वृद्धि हार्मोन है।
- हार्मोन को रासायनिक दूत कहा जाता है।
- एड्रिनलिन हार्मोन को आपातकाल का हार्मोन कहा जाता है।
- नर जनन हार्मोन एंड्रोजन है।
- इन्सुलीन की कमी से मधुमेह नामक रोग होता है।
- जड़ का अधोगामी वृद्धि गुरुवानुवर्तन कहलाता है।
- ऑक्जिन और जिबरेलिन्स पौधों के तनों की लंबाई में वृद्धि करता है।
- ऐबसिसिक एसिड के प्रभाव से पित्तयाँ मुरझा जाती है।
- फलों को पकाने का कार्य इथीलीन हार्मोन के द्वारा होता है।
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(पृष्ठ : 132 )
पाठ के अन्दर दिए हुए प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. दो तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन) के मध्य अंतर्ग्रथन (सिनेप्स) में क्या होता है ?
उत्तर—दो तंत्रिका कोशिकाओं के मध्य अन्तर्ग्रथन प्रक्रम में होता यह है कि विद्युत तरंगों जैसा आनेवाला तंत्रिका आवेग कुछ रसायनों का स्रावण करने को प्रेरित करते हैं ये रसायन अन्तर्ग्रथन को पार कर अगली तंत्रिका कोशिका में उसी प्रकार की तंत्रिका आवेग उत्पन्न कर देते हैं। फलतः एकत्रिक सूचना का संसाधन होता है और मस्तिष्क तक पहुँच जाता है । इससे तत्काल कार्य करने के लिए सम्बद्ध अंग को बाध्य होना पड़ता है।
प्रश्न 3. मस्तिष्क का कौन-सा भाग शरीर की स्थिति तथा संतुलन का अनुरक्षण करता है ?
उत्तर — पश्चमस्तिष्क में स्थित अनुमस्तिष्क नामक भाग शरीर की स्थिति तथा संतुलन का अनुरक्षण करता है ।
प्रश्न 4. हम एक अगरबत्ती की गंध का पता कैसे लगाते हैं ?
उत्तर—अगरबत्ती या किसी भी गन्ध का पता हम अग्रमस्तिष्क से करते हैं । इसमें गन्ध का पता करने के लिए संवेदी केन्द्र होता है, जिससे गंध की सूचना प्राप्त होती है
प्रश्न 5. प्रतिवर्ती क्रिया में मस्तिष्क की क्या भूमिका है ?
उत्तर – पूरे शरीर की तंत्रिकाएँ मेरुरज्जु से होकर मस्तिष्क को जानेवाले रास्ते में एक बण्डल के रूप में मिलता है, जिसे प्रतिवर्ती चाप कहते हैं। किसी संवेदना के प्र अनुक्रिया की सूचना इसी प्रतिवर्ती चाप द्वारा मस्तिष्क को दी जाती है। मस्तिष्क द्वारा उसपर पुनः विचार होता है ।
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( पृष्ठ: 136 )
प्रश्न 1. पादप हॉर्मोन क्या है ?
उत्तर—पादप (पौधे) में कुछ रासायनिक पदार्थों की वृद्धि होती है। ये उनकी गतिविधि को नियन्त्रण तथा समन्वय करते हैं । वे ही रसायन पादप हॉर्मोन कहलाते हैं ।
प्रश्न 2. छुई-मुई पादप की पत्तियों की गति, प्रकाश की ओर प्ररोह की गति से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर – छुई-मुई पादप की गति, प्रकाश के उद्दीपन की दिशा से प्रभावित गति से भिन्न है। छुई-मुई की गति अंकुचन गति कहलाती है, जबकि प्रकाश की ओर प्ररोह की गति प्रकाश के उद्दीपन की दिशा से प्रभावित होती हैं। पौधा उसी ओर मुड़ता हुआ दिखाई देता है, जिधर से प्रकाश की प्राप्ति होती है ।
प्रश्न 3. एक पादप हॉर्मोन का उदाहरण दीजिए जो वृद्धि को बढ़ाता है।
उत्तर- (i) जिबेरेलिन जो, तने की लम्बाई को बढ़ाने में सहायक होता है ।
(ii) ऑक्सिन, जो पौधे की तने की लम्बाई को बढ़ाने में सहायक होता है ।
प्रश्न 4. किसी सहारे के चारों ओर एक प्रतान की वृद्धि में ऑक्सिन किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर – प्रतान स्पर्श के प्रति संवेदनशील होता है । प्रतान जैसे ही किसी के स्पर्श के सम्पर्क में आते हैं तो ऑक्सिन दूसरी ओर विसरित हो जाता है और उस ओर मुड़कर कोशिकाएँ लम्बी होने लगती हैं। ठीक इसके विपरीत दिशा में प्रतान पौधों को सहारा प्रदान करता है। कारण कि प्रतान वस्तु को चारों ओर से जकड़ लेता है
प्रश्न 5. जलानुवर्तन दर्शाने के लिए एक प्रयोग की अभिकल्पना कीजिए ।
उत्तर—बीजों के अंकुरण के लिए एक ओर नम तथा दूसरी ओर सूखी हुई जमीन को उपयोग में लाते हैं । मूलांकुर, सबसे पहले धनात्मक गुरुत्वानुवर्ती होने के कारण नीचे की ओर गति करता है । बाद में गीली जमीन की ओर मुड़ने लगता है ।
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(पृष्ठ : 138 )
प्रश्न 1. जंतुओं में रासायनिक समन्वय कैसे होता है ?
उत्तर—जंतुओं में कुछ रासायनिक पदार्थ होते हैं जिन्हें हॉर्मोन कहते हैं । हॉर्मोन अंतःस्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित होते हैं । इनके द्वारा रासायनिक समन्वय होता है । ये हॉर्मोन आशा के अनुरूप विविधता दर्शाते हैं ।
प्रश्न 2. आयोडीनयुक्त नमक के उपयोग की सलाह क्यों दी जाती है ?
उत्तर—अवटु ग्रंथि को थायरॉक्सिन हॉर्मोन बनाने के लिए आयोडीन आवश्यक है । थायरॉक्सिन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के उपापचय क्रिया को हमारे शरीर में नियंत्रित करता है । थायरॉक्सिन के संश्लेषण के लिए आयोडीन अनिवार्य है। आयोडीन की कमी से घेंघा रोग होता है। इसी कारण आयोडीनयुक्त नमक के उपयोग की सलाह दी जाती है।
प्रश्न 3. जब एड्रीनलीन रुधिर में स्रावित होती है तो हमारे शरीर में क्या अनुक्रिया होती है ?
उत्तर – एड्रीनलीन सीधा रुधिर में स्रावित हो जाता है और शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचा दिया जाता है । इसके फलस्वरूप हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, ताकि हमारी पेशियों को अधिक ऑक्सीजन की आपूर्ति हो सके। इसका फल यह होता है कि पाचन- की जाती है ? धमनियों के आसपास की पेशियाँ सिकुड़ जाती हैं ।
प्रश्न 4. मधुमेह के कुछ रोगियों की चिकित्सा इंसुलिन का इंजेक्शन देकर क्यों
उत्तर- मधुमेह के रोगी में अग्न्याशय ग्रंथि की कम सक्रियता के कारण इंसुलिन नामक हॉर्मोन कम मात्रा में स्रावित होती है, इसलिए रक्त में शर्करा बढ़ता जाता है। अतः इंसुलिन का इंजेक्शन देकर रोगी के रक्त की शर्करा को नियंत्रित किया जाता है।
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अभ्यास : प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सा पादप हॉर्मोन है ?
(a) इंसुलिन (b) थायरॉक्सिन
(c) एस्ट्रोजन (d) साइटोकाइनिन
उत्तर – (d) साइटोकाइनिन ।
प्रश्न 2. दो तंत्रिका कोशिका के मध्य खाली स्थान को कहते हैं :
(a) द्रुमिका (b) सिनेप्स (c) एक्सॉन (d) आवेग
उत्तर—(b) सिनेप्स
प्रश्न 3. मस्तिष्क उत्तरदायी है :
(a) सोचने के लिए (b) हृदय स्पंदन के लिए
(d) उपर्युक्त सभी (c) शरीर का संतुलन बनाने के लिए
उत्तर- (d) उपर्युक्त सभी ।
प्रश्न 4. हमारे शरीर में ग्राही का क्या कार्य है ? ऐसी स्थिति पर विचार कीजिए जहाँ ग्राही उचित प्रकार से कार्य नहीं कर रहे हों । इस स्थिति में क्या समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं ?
उत्तर— ग्राही अंगों का कार्य वातावरण से सूचना प्राप्त करना है । ऐसी स्थिति में, जहाँ ग्राही उचित प्रकार से कार्य नहीं करता, जैसे अनायास भूखे को मुँह में पानी आ जाना । यह मेरुरज्जु द्वारा होता है । कभी-कभी मस्तिष्क तक सूचना पहुँचने में काफी समय लग जाता है । इस कारण दुर्घटनाएँ भी हो सकती हैं।
प्रश्न 5. पादप में प्रकाशानुवर्तन किस प्रकार होता है ?
उत्तर— पादप में प्रकाशा नुवर्तन प्रकाश के उद्दीपन के प्रभाव से प्रकाश की ओर होता है । प्रकाशानुवर्तन में पादप प्रकाश की ओर मुड़ता है जबकि जड़ उसके विपरीत दिशा अर्थात् जमीन की ओर में मुड़ती है ।
प्रश्न 6. मेरुरज्जु आघात में किन संकेतों के आने में व्यवधान होगा ?
उत्तर— मेरुरज्जु आघात के कारण संकेत, जो मस्तिष्क से दूर मेरुरज्जु होते हुए जाते हैं, उसके आवागमन में व्यवधान उत्पन्न होती है । इससे मस्तिष्क को संवाद सही ढंग से नहीं मिल पाता । फलतः प्रतिवर्ती क्रिया संपादित नहीं होती है ।
प्रश्न 7. पादप में रासायनिक समन्वय किस प्रकार होता है ?
उत्तर— पादपों में कोशिकाओं द्वारा कुछ रासायनिक पदार्थ स्रावित होते हैं । वे पादप हॉर्मोन कहलाते हैं । पादप हॉर्मोन पौधों में वृद्धि और विकास के साथ उनमें समन्वय स्थापित करते हैं। ये पादप हॉर्मोन क्रिया स्थान से दूर कहीं स्रावित होकर विसरण द्वारा उस स्थान तक पहुँचकर काम करते हैं ।
प्रश्न 8. एक जीव में नियंत्रण एवं समन्वय के तंत्र की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर—प्रत्येक वातावरणीय परिवर्तन का जीव की अनुक्रिया पर प्रभाव पड़ता है। जैसे हम किसी कार्यालय में धीरे-धीरे बात करते हैं, जोर-जोर से बात नहीं करते । हमारे क्रियाकलाप उस ढंग से होते हैं कि कार्य पूरा हो जाय । उसमें कोई व्यवधान उपस्थित नहीं होने पाए। वातावरण और अवसर के अनुसार कार्य करने में नियंत्रण और समन्वय तंत्र की नितांत आवश्यकता है। इससे व्यक्ति नियंत्रित तथा समन्वित रहता है
9. जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वय के लिए तंत्रिका तथा हॉर्मोन क्रयाविधि की तुलना तथा व्यतिरेक (contrast ) कीजिए ।
उत्तर— संवेदी तंत्रिकाएँ सूचनाएँ प्राप्त करती हैं। जंतुओं में क्रियाओं का नियंत्रण त्रिका तंत्र की तंत्रिकाओं से होता है । ये रक्त शर्करा स्तर पर उपापचय विकास तथा वृद्धि इत्यादि सभी हॉर्मोन से नियंत्रित होता है। अतः मानव में नियंत्रण तथा समन्वय, तंत्रिका तंत्र तथा हॉर्मोन तंत्र एक साथ मिलकर करते हैं ।
प्रश्न 10. छुई-मुई पादप में गति तथा हमारी टाँग में होनेवाली गति के तरीके में क्या अंतर है ?
उत्तर – छुई-मुई पौधों में स्पर्श होने की सूचना संचारित होती है पौधा इस सूचना को एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक संचारित करने के लिए वैद्युत रसायन साधन का उपयोग करते हैं। पौधे की पत्तियाँ नीचे झुक जाती हैं । ऐसा आधार कोशिकाओं में परासरणीय दाब कम होने के कारण होता है। जब उद्दीपन का समय समाप्त हो जाता तब पत्तियाँ सामान्य अवस्था में आ जाती हैं ।
टाँग की गति — सूचनाएँ विद्युत रासायनिक संकेतों के रूप में संचरित होती हैं ये पेशियों तक पहुँचकर संकेतों में बदल जाती हैं, जिसके फलस्वरूप पैर में गति होती है यह गति पेशियों के सिकुड़ने तथा फैलने से होती है, जो मस्तिष्क से नियंत्रित होती है। पैर की पेशियाँ तंत्रिकाओं से सम्बद्ध होती हैं ।
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