इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 10 के सामाजिक विज्ञान भूगोल के पाठ 6. मानचित्र अध्ययन उच्चावच निरूपण (Bihar Manchitra Adhyayan Uchchavach adhyayan class 10th solutions) को पढ़ेंगे।
6. मानचित्र अध्ययन उच्चावच निरूपण
उच्चावच निरूपण
पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार की भू-आकृतियाँ होती हैं जिनमें शंक्वाकार पहाड़ी, पठार, ‘T-आकार की घाटी, जलप्रपात, झील आदि प्रमुख हैं। इन आकृतियों का मानचित्र पर निरूपण होता है जो उच्चावच निरूपण कहलाता है। यानी, उच्चावच निरूपण धरातल पर पायी जानेवाली त्रिविमीय आकृति का समतल सतह पर प्रदर्शन करता है।
Manchitra Adhyayan Uchchavach adhyayan class 10th solutions
उच्चावच प्रदर्शन की विधियाँ
1. हैश्यूर विधि :
यह एक विधि है जिससे उच्चावच निरूपण किया जाता है। इस विधि का विकास ऑस्ट्रिया के लेहमान ने किया था जिसमें मानचित्र में छोटी, महीन और खंडित रेखाएं खींची जाती हैं। ये रेखाएं ढाल की दिशा या जल बहने की दिशा में खींची जाती हैं। समतल क्षेत्र को खाली छोड़ा जाता है और उच्च ढ़ाल वाले भागों के पास-पास इन रेखाओं को मोटी एवं गहरी कर दिया जाता है। इस विधि से मानचित्र काफी आकर्षक और सजीव लगता है।
2. पर्वतीय छायाकरण :
इस विधि के अंतर्गत भू-आकृतियों पर उत्तर पश्चिम कोने पर प्रकाश पड़ने की कल्पना की जाती है जिससे अंधेरे हिस्से को गहरी आभा से भर दिया जाता है जबकि प्रकाश वाले हिस्सों को हल्की आभा से भरा जाता है। यह विधि पर्वतीय देशों के उच्चावच को सटीक ढंग से दिखाने में सक्षम है, लेकिन ये मानचित्र ढाल की मात्रा का सही ज्ञान नहीं देते।
3. तल चिह्न :
भवनों, पुलों, खंभों, पत्थरों जैसी स्थाई वस्तुओं की समुद्र तल से मापी गई ऊँचाई को वास्तविक सर्वेक्षण द्वारा प्रदर्शित करने के लिए एक चिह्न का उपयोग किया जाता है जिसे तल चिह्न कहा जाता है।
4. स्थानिक ऊँचाई :
तल चिह्न की सहायता से किसी स्थान विशेष की मापी गई ऊँचाई को स्थानिक ऊँचाई कहा जाता है। इस विधि में बिंदुओं के द्वारा मानचित्र में विभिन्न स्थानों की ऊँचाई संख्या में लिख दिया जाता है।
5. त्रिकोणमितीय स्टेशन :
त्रिकोणमितीय स्टेशन का संबंध उन बिंदुओं से है जिनका उपयोग त्रिभूजन विधि (एक प्रकार का सर्वेक्षण) द्वारा सर्वेक्षण करते समय स्टेशन के रूप में हुआ था। मानचित्र पर त्रिभुज बनाकर उसके बगल में धरातल की समुद्र तल से ऊँचाई लिख दी जाती है।
6. स्तर रंजन :
रंगीन मानचित्रों में रंगों विभिन्न आभाओं के द्वारा उच्चावच प्रदर्शन का एक मानक निश्चित किया गया है। एटलस एवं दिवार मानचित्रों में इस विधि का उपयोग आपने अवश्य ही देखा होगा। ऊँचाई में वृद्धि के अनुसार रंगों की आभाएँ हल्की होती जाती है। इनमें समुद्र या जलीय भाग को नीले रंग से दिखाया जाता है। मैदान को हरा रंग से तथा पर्वतों का बादामी हल्का कत्थई रंग से दिखाया जाता है। जबकि बर्फीले क्षेत्र को सफेद रंग से दिखा जाता है।
7. समोच्च रेखाएँ :
समोच्च रेखाओं की मदद से उच्चावच प्रदर्शन की विधि सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। यह एक मानक विधि है जो बिंदुओं/स्थानों को समुद्र जल-तल से एक समान ऊंचाई वाले समोच्च रेखाओं के रूप में मानचित्र पर खींचती है। इन रेखाओं को वास्तविक सर्वेक्षण के आधार पर खींचा जाता है और मानचित्र पर इन समोच्च रेखाओं के साथ उसकी ऊंचाई का मान लिखा जाता है।
विभिन्न प्रकार के उच्चावच को प्रदर्शित करने के लिए समोच्च रेखाओं के बनाने का प्रारूप अलग-अलग होता है। एक समान ढ़ाल को दिखाने के लिए समोच्च रेखाओं को समान दूरी पर खींचा जाता है। खड़ी ढ़ाल को दिखाने के लिए समोच्च रेखाएं पास-पास है। जबकि मंद ढ़ाल के लिए इन रेखाओं को दूर-दूर बनाया जाता है।
समोच्च रेखाओं पर विभिन्न भू-आकृतियों का प्रदर्शन :
समोच्च रेखाओं की सहायता से भू-आकृतियों को प्रदर्शित करने के लिए उन आकृतियों की जानकारी होनी चाहिए क्योंकि भू-आकृतियों के अनुरूप ही समोच्च रेखाओं का प्रारूप बनता है तथा उन समोच्च रेखाओं पर संख्यात्मक मान (ऊँचाई के अनुसार) बैठाया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि आप वृताकार प्रारूप में आठ-दस समोच्च रेखाएँ खींचते हैं तब इससे दो भू-आकृतियाँ दिखाई जा सकती है। पहला शंक्वाकार पहाड़ी एवं दूसरा झील। परंतु इन दोनों भू- आकृतियों में समोच्च रेखाओं का मान ऊँचाई के अनुसार अलग-अलग होता है। शंक्वाकार पहाड़ी के लिए बनाए जाने वाले समाच्च रेख्याओं का मान बाहर से अंदर की ओर बढ़ता हुआ होता है, यानी अधिक ऊँचाई वाली समोच्च रेखा अन्दर की ही होती है। दूसरी ओर झील आकृति दिखाने के लिए समोच्च रेखाओं में बाहर की ओर अधिक वाली तथा अंदर की ओर कम मानवाली समोच्च रेखाएँ होती हैं। कहने का तात्पर्य यह समोच्च रेखाओं पर भू-आकृति प्रदर्शित करते समय उन रेखाओं के मान अच्छी तरह समझकर लिखने चाहिए। समोच्च रेखीय मानचित्र पर अनुभाग रेखा खींचने के बाद पार्श्वचित्र बनाया जाता है । इस पार्श्वचित्र की सहायता से संबंधित भू-आकृतियों को स्पष्टः समझा जा सकता है।
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पर्वत :
पर्वत स्थल पर पाई जानेवाली वह आकृति है जिसका आधार काफी चौड़ा एवं शिखर काफी पतला अथवा नुकीला होता है। आसपास की स्थला-ति से यह पर्याप्त ऊँची उठी हुई होती है। इसका रूप शंक्वाकार या शंकुनुमा होता है। ज्वालामुखी से निर्मित पहाड़ी, शंकु आकृति की होती है। शंक्वाकार पहाड़ी की समोच्च रेखाओं को लगभग वताकार रूप में बनाया जाता है। बाहर से अन्दर की ओर वृतों का आकार छोटा होता जाता है। बीच में सर्वाधिक ऊँचाई वाला वृत्त होता है। बाहर से अंदर की ओर सर्वोच्च रेखाओं का मान क्रमशः बढ़ता जाता है।
पठार :
पठार धरातल पर पायी जानेवाली ऐसी आकृति है। जिसका आधार और शिखर दोनों चौड़ा एवं विस्तृत होता है। परंतु इसका विस्तृत शिखर उबड़-खाबड़ होता है। परिणामस्वरूप, पठारी भाग को दिखाने के लिए समोच्च रेखाओं को लगभग लंबाकार आकृति में बनाते हैं। प्रत्येक समोच्च रेखा बंद आकृति में बनाया जाता है। इसका मध्यवर्ती समोच्च रेखा भी पर्याप्त चौड़ा बनाया जाता है।
जलप्रपात :
जब किसी नदी का जल अपनी घाटी से गुजरने के दौरान ऊपर से नीचे की ओर तीव्र ढाल पर अकस्मात गिरती है तब इसे जलप्रपात कहा जाता है। इस आकृति को दिखाने के लिए खड़ी ढ़ाल के पास कई समोच्च रेखाओं को एक स्थान पर मिला दिया जाता है। तथा शेष रेखाओं को ढाल के अनुरूप बनाया जाता है।
T-आकार की घाटी
इस प्रकार की घाटी का निर्माण नदी द्वारा किया जाता है। खड़ी ‘T’ आकार की घाटी का निर्माण नदी द्वारा उसके युवावस्था में किया जाता है। इस आकृति को प्रदर्शित करने के लिए समोच्च रेखाओं को अंग्रेजी के T अक्षर की उल्टी आकृति बनाई जाती है। जिसमें समोच्च रेखाओं का मान बाहर से अंदर की ओर क्रमशः घटता जाता है।
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लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. हैश्यूर विधि तथा पर्वतीय छायाकरण विधि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- हैश्यूर विधि तथा पर्वतीय छायाकरण विधि निम्न अंतर है।
हैश्यूर विधि | पर्वतीय छायाकरण विधि |
(1.) इस विधि में मानचित्र में छोटे-महीने खंडित रेखा खींची जाती है। | (1.) इस विधि द्वारा भू आकृति पर उत्तर-पश्चिम कोने पर ऊपर से प्रकाश पड़ने की कल्पना की जाती है। |
(2.) ये रेखाएँ ढ़ाल की दिशा अथवा जल बहने की दिशा में खीची जाती है। | (2.) इस कारण अंधेरे में पड़ने वाले हिस्से को ढ़ाल की गहरी आभा से भरते है। |
(3.) तीव्र ढ़ाल होने पर ये रेखाएँ करीब खींची जाती है जिससे यह काला दिखता है। इससे ढ़ाल प्रवणता का सही-सही ज्ञान हो जाता है। | (3.) पर्वतीय देशों के उच्चावच का प्रदर्शन करने के लिए प्रयुक्त होता हैं। पर ढ़ाल का सही ज्ञान नहीं देता। |
प्रश्न 2. तल चिन्ह और स्थानिक ऊँचाई क्या है।
उत्तर- तल चिन्ह- वास्त्विक सर्वेक्षण के द्वारा भवनों, पुलों, खंभों, पत्थरों जैसे स्थाई वस्तुओं पर समुद्र तल से मापी गई ऊँचाई को प्रदर्शित करने वाले चिन्ह को तल चिन्ह कहा जाता है।
स्थानिक ऊँचाई- तल चिन्ह की सहायता सें किसी स्थान विशेष की मापी गई ऊँचाई को स्थानिक ऊँचाई कहा जाता है। इस विधि में बिन्दुओं के द्वारा मानचित्र में विभिन्न स्थानों की ऊँचाई संख्या में लिख दिया जाता है।
प्रश्न 3. समोच्च रेखा से आप क्या समझते है?
उत्तर- समोच्च रेखाओं की सहायता से उच्चावच प्रदर्शन की विधि को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह एक मानक विधि है। समोच्च रेखाएँ भूलत पर समुद्र जल तल से एक समान ऊँचाई वाले बिंदुओ /स्थानों को मिलाकर मानचित्र पर खींची जानेवाली काल्पनिक रेखाएँ है। मानचित्र में प्रत्येक समोच्च रेखा के साथ उसकी ऊँचाई का मान लिख दिया जाता है। मानचित्र पर इन समोच्च रेखाओं को बादामी रंग से दिखाया जाता है।
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प्रश्न 4. स्तर रंजन क्या है?
उत्तर- रंगीन मानचित्र में रंगों की विभिन्न अभाओं के द्वारा उच्चावच प्रदर्शन का एक मानक निश्चित किया गया है। एटलस एवं दिवार मानचित्र में इस विधि का उपयोग आपने अवश्य ही देखा होगा/ऊँचाई में वृद्धि के अनुसार रंगो की आभाएं हल्की होती जाती है। इनमें समुद्र या जलीय भाग को नीले रंग से दिखाया जाता है। मैदान को हरा रंग से तथा पर्वतों को बादामी हल्का कत्थई रंग से दिखाया जाता है। जबकि बर्फीले क्षेत्र को सफेद रंग से दिखाया जाता है।
प्रश्न 5. समोच्च रेखाओं द्वारा शंक्वाकार पहाड़ी का प्रदर्शन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर- समोच्च रेखाओं की सहायता से भू-आकृतियों को प्रदर्शन करने के लिए उन आकृतयों की जानकारी होनी चाहिए क्योंकि भू-आकृतियों के अनुरूप ही समोच्च रेखाओं का प्रारूप बनता है तथा उन समोच्च रेखाओं पर संख्यात्मक मान ऊँचाई के अनुसार बैठाया जाता है।
उदाहरण के लिए
यदि आप वृताकार प्रारूप में आठ-दस समोच्च रेखाएँ खींचते है तब इससे दो भू आकृति दिखाई जा सकती है। पहला शंक्वाकार पहाड़ी एवं दूसरा झील परंतु इन दोनों भू आकृतियों में समोच्च रेखाओं का मान ऊँचाई के अनुसार अलग-अलग होता है। शंक्वाकार पहाड़ी के लिए बनाए जाने वाले समोच्च रेखाओं का मान बाहर से अंदर की ओर बढ़ता हुआ होता है, यानी अधिक ऊँचाई वाली समोच्च रेखा अन्दर की ही होती है। दूसरी ओर झील आकृति दिखाने के लिए समोच्च रेखाओं में बाहर की ओर अधिक वाली तथा अंदर की ओर कम मानवाली समोच्च रेखाएँ होती है। कहने का तात्पर्य यह समोच्च रेखाओं पर भू आकृति प्रदर्शित करते समय उन रेखाओं के मान अच्छी तरह समझकर लिखने चाहिए। समोच्च रेखीय मानचित्र पर अनुभाग रेखा खींचने के बाद पार्श्वचित्र बनाया जाता है। इस पार्श्वचित्र की सहायता से संबंधित भू-आकृतियों को स्पष्ट समझा जा सकता है।
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. उच्चावच प्रदर्शन की प्रमुख विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- उच्चावच प्रदर्शन की प्रमुख विधिया निम्न है।
(1.) हैश्यूर विधि- ऑस्ट्रिया के अधिकारी लेहमान ने इसकी खोज की थी। मानचित्र में छोटी-महीन-खंडित रेखाओ के सहारे उच्चावच को प्रदर्शित किया जाता है। तीव्र ढ़ाल वाले क्षेत्रों में पास-पास रेखाएँ होने के कारण रेखाएँ मोटी एवं गहरी दिखायी जाती है।
(2.) पर्वतीय छायाकरण विधि- इस विधि के अंतर्गत उच्चावच-प्रदर्शन के लिए भू-आकृतियों पर उत्तर पश्चिम कोने पर ऊपर से प्रकाश पड़ने की कल्पना की जाती है। इसके कारण अंधेरे में पड़ने वाले हिस्से को या ढ़ाल को गहरी आभा से भर देते है जबकि प्रकाश वाले हिस्से या कम ढ़ाल को हल्की आभा से भर देते है या फिर खाली भी छोड़ सकते है।
इस विधि से पर्वतीय देशों के उच्चावच को प्रभावशाली ढ़ंग से दिखाना संभव होता है परन्तु इन मानचित्र से भी ढ़ाल की मात्रा का सही ज्ञान नहीं हो पता है।
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(3.) तल चिन्ह- वास्तविक सर्वेक्षण के द्वारा भवीनों, पुलों, खंभों, पत्थरों जैसे स्थाई वस्तुओं पर समुद्र तल से मापी गई ऊँचाई को प्रदर्शित करने वाले चिन्ह को तल चिन्ह कहा जाता है।
(4.) स्थानिक ऊँचाई- तल चिन्ह की सहायता से किसी स्थान विशेष की मापी गई ऊँचाई को स्थानिक ऊँचाई कही जाती है। इस विधि में बिंदुओं के द्वारा मानचित्र में विभिन्न स्थानों की ऊँचाई संख्या में लिख दिया जाता है।
(5.) त्रिकोणमितीय स्टेशन- त्रिकोणमितीय स्टेशन का संबंध उन बिंदुओं से है जिनका उपयोग त्रिभुजन विधि द्वारा सर्वेक्षण करते समय स्टेशन के रूप में हुआ था। मानचित्र पर त्रिभुज बनाकर उसके बगल में धरातल की समुद्र तल से ऊँचाई लिख दी जाती है।
(6.) स्तर रंजन- रंगीन मानचित्रों में रंगों की विभिन्न आभाओं के द्वारा उच्चावच प्रदर्शन का एक मानक निश्चित किया गया है। एटलस एवं दिवार मानचित्रों में इस विधि का उपयोग आपने अवश्य ही देखा होगा। ऊँचाई में वृद्धि के अनुसार रंगों की आभाएँ हल्की होती जाती है। इनमें समुद्र या जलीय भाग को नीले रंग से दिखाया जाता है। मैदान को हरा से तथा पर्वतों को बादामी हल्का कत्थई रंग से दिखाया जाता है। जब कि बर्फीले क्षेत्र को सफेद रंग से दिखाया जाता है।
प्रश्न 2. समोच्च रेखा क्या है? इसके द्वारा विभिन्न प्रकार के ढालों का प्रदर्शन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर- समोच्च रेखा भूतल पर समुद्रतल से एक समान ऊँचाई को मिलाने वाली काल्पनिक रेखाएँ होती है। इस विधि को उच्चाव प्रदर्शन का सर्वश्रेष्ठ विधि माना जाता है। वास्तविक सर्वेक्षण के आधार पर इन रेखाओं को बादामी रंग से खींची जाती है। प्रत्येक रेखा के मान को भी अंकित कर दिया जाता है।
विभिन्न प्रकार के उच्चावच को प्रदर्शिन करने के लिए समोच्च रेखाओं के खीचनें या बनाने का प्रारूप भिन्न-भिन्न होता है। एक समान ढ़ाल को दिखाने के लिए समान दूरी पर रेखाएँ खींची जाती है। खडी ढ़ाल को दिखाने के लिए समोच्च रेखाएँ पास-पास बनायी जाती है। इसके विपरीत मंद ढ़ाल को दिखाने के लिए इन रेखाओ को दूर-दूर बनाया जाता है। सीढ़ीनुमा ढ़ाल के लिए समोच्च रेखाएँ अंतराल पर परन्तु दो या तीन रेखाएँ एक साथ जोड़ में बनाई जाती है। इसी तरह अन्य अनेक भू आकृतियों को समोच्च रेखाओ से प्रदर्शित किया जा सकता है।
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