इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 10 के विज्ञान के पाठ 8 जीव जनन कैसे करते हैं (Jiv Janan Kaise Karte hai Class 10th Solutions) को पढ़ेंगे।
8. जीव जनन कैसे करते हैं
जीव जिस प्रक्रम द्वारा अपनी संख्या में वृद्धि करते है, उसे जनन कहते हैं।
जनन के प्रकार- जीवों में जनन मुख्यातः दो तरीके से संपन्न होता है– लैंगिक जनन तथा अलैंगिक जनन
Jiv Janan Kaise Karte hai Class 10th Solutions
अलैंगिक जनन
अलैंगिक जनन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है-
1. इसमें जीवों का सिर्फ एक व्यष्टि भाग लेता है।
2. इसमें युग्मक अर्थात शुक्राणु और अंडाणु कोई भाग नहीं लेते हैं।
3. इस प्रकार के जनन में या तो समसूत्री कोशिका विभाजन या असमसूत्री कोशिका विभाजन होता है।
4. अलैंगिक जनन के बाद जो संताने पैदा होती है वे आनुवंशिक गुणों में ठीक जनकों के समान होते हैं।
5. इस प्रकार के जनन से ज्यादा संख्या में एवं जल्दी से जीव संतानो की उत्पत्ति कर सकते हैं।
6. इसमें निषेचन की जरुरत नहीं पड़ती है।
जीवों में अलैंगिक जनन निम्नांकित कई विधियों से संपन्न होता है।
1. विखंडन- विखंडन के द्वारा ही मुख्य रूप से एक कोशिकीय जीव जनन करते हैं। जैसे- जीवाणु,अमीबा,पैरामीशियम, एक कोशिकीय शैवाल, युग्लीना आदि सामान्यतः विखंडन की क्रिया द्वारा ही जनन करते हैं।
विखंडन की क्रिया दो प्रकार से संपन्न होती है
1. द्विखंडन एवं
2. बहुखंडन
(क) द्विखंडन या द्विविभाजन- वैसा विभाजन जिसके द्वारा एक व्यष्टि से खंडित होकर दो या अधिक का निर्माण होता हो, उसे द्विखंडन या द्विविभाजन कहते हैं।
जैसे- जीवाणु, पैरामीशियम, अमीबा, यीस्ट, यूग्लीना आदि में द्विखंडन विधि से जनन होता है।
(ख). बहुखंडन या बहुविभाजन- वैसा विभाजन जिसके द्वारा एक व्यष्टि खंडित होकर अनेक व्यष्टियों की उत्पत्ति करता हो, उसे बहुखंडन या बहुविभाजन कहते हैं। जैसे- अमीबा, प्लैज्मोडियम (मलेरिया परजीवी) आदि में बहुखंडन विधि से जनन होता है।
1. मुकुलन- मुकुलन एक प्रकार का अलैंगिक जनन है जो जनक के शरीर से कलिका फुंटने या प्रवर्ध निकलने के फलस्वरूप संपन्न होता है। जैसे- यीस्ट
2. अपखंडन या पुनर्जनन- इस प्रकार के जनन में जीवों का शरीर किसी कारण से दो या अधिक टुकड़ों में खंडित हो जाता है तथा प्रत्येक खंड अपने खोए हुए भागों का विकास कर पूर्ण विकसित नए जीव में परिवर्तित हो जाता है। जैसे- स्पाइरोगाइरा, प्लेनेरिया आदि में जनन अपखंडन विधि से होता है।
3. बीजाणुजनन- इस प्रकार के जनन में सामान्यतः सूक्ष्म थैली जैसी बीजाणुधानियों का निमार्ण होता है। हवा के द्वारा इनका प्रकीर्णन दूर-दूर तक होता है। अनुकूल जगह मिलने पर बीजाणु अंकुरित होते हैं तथा उनके भीतर की कोशिकीय रचनाएँ बाहर निकलकर वृ़द्ध करने लगती है। जब ये विकसित होकर परिपक्व हो जाती है तो इनमें पुनः जनन करने की क्षमता पैदा हो जाती है। जैसे- राइजोपस में बीजाणुजनन होता है।
पौधों मे कायिक प्रवर्धन
जनन की वह प्रक्रिया जिसमें पादप शरीर का कोई कायिक या वर्धी भाग जैसे जड़, तना, पत्ता आदि उससे विलग और परिवर्द्धित होकर नए पौधे का निर्माण करता है, उसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं।
लैंगिक जनन- जनन की वह विधि जिसमें नर और मादा भाग लेते हैं, उसे लैंगिक जनन कहते हैं।
लिंग के आधार पर जीवों को दो वर्गों मे बाँटा गया है-
1. एकलिंगी और 2. द्विलिंगी
1. एकलिंगी- वे जीवजिनमें नर और मादा लिंग अलग-अलग जीवों में पाया जाता है, उसे एकलिंगी कहते हैं। जैसे- पपीता, तरबूज, मनुष्य, घोड़ा, बंदर, कबूतर आदि।
2. द्विलिंगी- वे जीव जिसमें नर और मादा लिंग एक ही व्यष्टि में होता है, उसे द्विलिंगी कहते हैं। जैसे-सरसों, केंचुआ, हाइड्रा आदि।
पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन
लैंगिक जनन के लिए पुष्पी पौधों में फूल ही वास्तविक जनन भाग है। पौधों के पुष्पों में ही जनन अंग उपस्थित होते हैं।
फूल जिस तने से जुड़ा रहता है, वह वृंत कहलाता है। वृंत का ऊपरी फैला हुआ भाग पुष्पासन कहलाता है, जिस पर संपूर्ण पुष्प टिका रहता है।
पुष्प के चार भाग होते हैं-
1. बाह्य दल पुंज, 2. दलपुंज, 3. पुमंग और 4. जायांग
2. बाह्य दल पुंज- पुष्प का सबसे बाहरी भाग होता है। इसका रंग हरा होता है।
3. दलपुंज- बाह्य दल पुंज का ऊपरी भाग होता है। यह रंगीन होता है।
4. पुमंग- यह पुष्प का नर भाग है। इनमें लंबी-लंबी रचनाएँ पाई जाती है, जिसे पुंकेसर कहते हैं।
पुंकेसर के दो भाग होत हैं-
1. तंतु- यह लचीला, पतला, लंबा तथा डोरे के समान होता है और पुष्पासन से जुड़ा होता है।
2. परागकोश- तंतु के अग्रभाग परागकोश कहलाता है। इसके अंदर परागकण होते हैं, जो निषेचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
3. जायांग- यह पौधों का मादा भाग है। यह कई स्त्रीकेसर से मिलकर बना होता है। स्त्रीकेसर अंडाशय, वर्तिका और वर्तिकाग्र में बँटे होते हैं।
निषेचन- नर युग्मक और मादा युग्मक के संगलन को निषेचन कहा जाता हैं।
मनुष्य का प्रजनन अंग- मानव जननांग साधारणतः लगभग 12 वर्ष की आयु मे परिपक्व एवं क्रियाशिल होने लगते हैं। इस अवस्था में बालक-बा
लिकाओ के शरीर में कुछ परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाता हैं। यह अवस्था किशोरावस्था कहलाता हैं।
लैंगिक जनन संचारित रोग- यौन संबंध से होनेवाले संक्रामक रोग को लैंगिक जनन संचारित रोग कहते हैं।
बैक्टीरिया-जनित रोग- गोनोरिया, सिफलिस, यूरेथ्राइटिस तथा सर्विसाइटिस आदि।
वाइरस-जनित रोग- सर्विक्स कैंसर, हर्पिस तथा एड्स आदि।
प्रोटोजोआ-जनित रोग-स्त्रियों के मूत्रजनन नलिकाओं में एक प्रकार के प्रोटोजोआ के संक्रमन से होने वाले रोग ट्राइकोमोनिएसिस है।
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मुकुलन द्वारा प्रजनन यीस्ट में होता है।
पूष्पी पौधे में लैंगिक जनन फूलों द्वारा होता है।
द्विखण्डन विधि द्वारा जनन अमीबा में होता है।
पुष्प में परागकरण पुंकेसर में बनते हैं।
पुष्प के अंडाश्य भाग से फल बनता है।
हाइड्रा में अलैंगिक जनन मुकुलन विधि द्वारा होता है।
पुष्प का नर जननांग पुंकेसर कहलाता है।
पपीता एकलिंगी पुष्प है।
पुनरुद्भवन का उदाहरण हाइड्रा है।
परागकोश में परागकण होते हैं।
हाइड्रा में प्रजनन मुकुलन विधि द्वारा होता है।
पौधे में जनन अंग पुष्प में पाए जाते हैं।
यीस्ट में द्विखण्डन नहीं होता है।
परागकण, परागकोष के अंदर होता है।
अंडाणु अंडाशय में निषेचित होता है।
शुक्रवाहिका मादा को जनन तंत्र नहीं है।
शुक्राणु का निर्माण वृषण में होता है।
स्त्रियों में लिंग गुणसुत्र का युग्म ग्ग् और पुरूष में लिंग गुणसुत्र का युग्म ग्ल् होता है।
केंचुआ एक उभयलिंगी जन्तु है।
अंडाणु अंडाशय में निषेचित होता है।
हाइड्रा में प्रजनन मुकुलन विधि से होता है।
अमीबा में अलैंगिक जनन विखंडन विधि से होता है।
सिफलिस, एड्स और गोनोरिया जनन संचारित रोग है।
गोनोरिया और सिफलिस जीवाणु जनित रोग है।
मस्सा जीवाणु जनित रोग है।
डेंगू उत्पन्न करने वाले मच्छर साफ जल में रहते हैं।
प्लैज्मोडियम मलेरिया परजीवी रोग है।
आयोडीन की कमी से घेघा रोग होता है।
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( पृष्ठ : 142 )
पाठ में दिए हुए प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. डी० एन० ए० प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर— जनन की मूल घटना डी. एन. ए. (D.N.A.) की प्रतिकृति बनानी है। डी. एन॰ ए॰ की प्रतिकृति बनाने के लिए कोशिकाएँ विभिन्न रासायनिक क्रियाओं का उपयोग करती हैं। जनन कोशिका में इस प्रकार डी. एन. ए. की दो प्रतिकृति बनाती है तथा उनका एक-दूसरे से अलग होना अति आवश्यक है । परन्तु डी. एन. ए. की एक प्रतिकृति को मूल कोशिका में रखकर दूसरी प्रतिकृति को उससे बाहर निकाल देने से काम नहीं चलेगा, क्योंकि दूसरी प्रतिकृति के पास जैव प्रक्रमों के अनुरक्षण हेतु संगठित कोशिकीय संरचना नहीं होगी। इसलिए डी. एन. ए. बनने के साथ-साथ दूसरी कोशिकाएँ की संरचनाओं का सृजन भी होता रहता है । इसके बाद डी. एन. ए. की प्रतिकृतियाँ विलग हो जाती हैं । इस प्रकार कोशिकाओं का बनाने के लिए D.N.A. प्रतिकृति आवश्यक है।
प्रश्न 2. जीवों में विभिन्नता स्पीशीज के लिए तो लाभदायक है परंतु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्यों ?
उत्तर – यदि समष्टि के जीवों में कुछ विभिन्नता होंगी तो उनके जीवित रहने कुछ संभावना है । वह समानता के आधार पर अधिक अनुकूल होता है । लेकिन D.N.A. की दोनों प्रतिकृति एक समान नहीं होती, जो धीरे-धीरे गहरी होती जाती है । जनन में होनेवाली ये विभिन्नताएँ अन्ततः नई स्पीशीज के विकास में सहायक होती है । इसलिए जीवों में विभिन्नता स्पीशीज के लिए तो लाभदायक है लेकिन व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है ।
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( पृष्ठ : 146 )
प्रश्न 1. बीजाणु द्वारा जनन से जीव किस प्रकार लाभान्वित होता है ?
उत्तर – अनेक सरल बहुकोशिक जीवों में विशिष्ट जनन संरचनाएँ पायी जाती हैं । ऊर्ध्व तन्तुओं पर सूक्ष्म गुच्छ संरचनाएँ जनन में भाग लेती हैं । इस गुच्छा में बीजाणु भरे होते हैं, जिसे बीजाणुधानी कहते हैं । यह बीजाणु वृद्धि करके राइजोपस के नए जीव उत्पन्न करते हैं। बीजाणु के चारों ओर एक मोटी भित्ति होती है, जो प्रतिकूल परिस्थितियों में उसकी रक्षा करती है । नमी सतह के सम्पर्क में आने पर वह वृद्धि करने लगते हैं ।
प्रश्न 2. क्या आप कुछ कारण सोच सकते हैं जिससे पता चलता हो कि जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नयी संतति उत्पन्न नहीं कर सकते ?
उत्तर—इस प्रकार के जीवों की संरचना अत्यन्त जटिल होती है। इसमें एक विशिष्ट कार्य के एक लिए विशिष्ट अंग होता है। अंगों में श्रम विभाजन होता है । पुनरुद्भवन विशिष्ट कोशिकाओं द्वारा होता है। इस प्रकार की कोशिकाएँ जटिल जीवों में नहीं होतीं । इसलिए जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नई संतति उत्पन्न नहीं कर सकते हैं ।
प्रश्न 3. कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है ?
उत्तर – ऐसे बहुत-से पौधे हैं, जिनमें कुछ भाग जैसे जड़, तना तथा पत्तियाँ उपयुक्त परिस्थितियों में विकसित होकर नया पौधा उत्पन्न करते हैं। अधिकतर जन्तुओं के विपरीत एकल पौधे इस क्षमता का उपयोग जनन की विधि के रूप में करते हैं । कलम अथवा रोपण जैसी कायिक प्रवर्धन की तकनीक का उपयोग कृषि में भी किया जाता है । जैसे – गुलाब, गन्ना अथवा अंगूर ।
प्रश्न 4. डी० एन० ए० की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक क्यों है ?
उत्तर—D.N.A. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक है, क्योंकि जनक प्रतिकृति नई संरचना में तथा एक मूल कोशिका में रह जाती है। इस प्रकार दो प्रतिकृतियाँ जनन हो सकता है । इसके लिए एक अलग से कोशिकीय संरचना आवश्यक है। एक कोशिका की दो कोशिकाएँ बनती है । ये दोनो प्रतिकृतियाँ अलग हो जाती हैं तब भी दो नई कोशिकाएँ बनाने में सहायता करती हैं और जनन होता है।
(पृष्ठ : 154 )
प्रश्न 1. परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर- परागण क्रिया वह प्रक्रिया है जिसमें पुष्प के परागकणों के पराग कोश से वर्तिकाम तक पहुँचता है। इसमें किसी प्रकार की दो कोशिकाओं में संलयन नहीं होता है । निषेचन में नर और मादा युग्मकों का संलयन होता है। युग्मनज का निर्माण होता है । यह परागण के बाद होता है ।
प्रश्न 2. शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि की क्या भूमिका है ?
उत्तर – प्रोस्टेट तथा शुक्राणु अपने स्राव शुक्रवाहिका में डालते हैं। इससे शुक्राणु एक तरल माध्यम में आ जाते हैं । इसके कारण उसका स्थानांतरण सरलता से होता है साथ ही यह स्राव उन्हें पोषण भी प्रदान करता है। शुक्राणु सूक्ष्म संरचनाएँ हैं
प्रश्न 3. यौवनारंभ के समय लड़कियों में कौन-से परिवर्तन दिखाई देते हैं ?
उत्तर— यौवनारंभ के समय लड़कियों में निम्नलिखित परिवर्तन दिखाई देते हैं :
(i) स्तनों के आकार में वृद्धि ।
(ii) स्तनाग्र की त्वचा के रंग का गहराना ।
(iii) रजोधर्म का प्रारम्भ होना ।
प्रश्न 4. माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है ?
उत्तर—निषेचन के पश्चात निषेचित अण्डा तथा युग्मज गर्भाशय में स्थापित हो जाता है तथा विभाजित होने लगता है भ्रूण को माँ के रुधिर से ही पोषण मिलता है। इसके लिए एक विशेष संरचना होती है, जिसे प्लेसेंटा कहते हैं । यह एक तश्तरीनुमा संरचना है, जो गर्भाशय की भित्ति में धँसी होती है। इसमें भ्रूण की ओर के ऊतकों में प्रवर्ध होते हैं। माँ के ऊतकों में रिक्त स्थान होते हैं, जो प्रवर्ध को आच्छादित करते हैं । यह माँ से भ्रूण को ग्लूकोज, ऑक्सीजन एवं अन्य पदार्थों के स्थानान्तरण हेतु एक बड़ा क्षेत्र प्रदान करते हैं ।
प्रश्न 5. यदि कोई महिला कॉपर-टी का प्रयोग कर रही है तो क्या यह उसकी यौन- संचरित रोगों से रक्षा करेगा ?
उत्तर— नहीं, कॉपर-टी यौन संचरित रोगों से महिला की रक्षा नहीं करेगा ।
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अभ्यास : प्रश्न तथा उनके उत्तर
प्रश्न 1. अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा होता है ।
(a) अमीबा (b) यीस्ट (c) प्लैज़्मोडियम (d) लेस्मानिया
उत्तर—(b) यीस्ट |
प्रश्न 2. निम्न में से कौन मानव में मादा जनन तंत्र का भाग नहीं है ?
(a) अंडाशय (b) गर्भाशय (c) शुक्रवाहिका (d) डिंबवाहिनी
उत्तर- (c) शुक्रवाहिका ।
प्रश्न 3. परागकोश में होते हैं :
(a) बाह्यदल (b) अंडाशय (c) अंडप (d) परागकण
उत्तर- (d) परागकण ।
प्रश्न 4. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के क्या लाभ हैं ?
उत्तर— अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के निम्नांकित लाभ हैं :
(i) युग्मन द्वारा जायगोट का निर्माण होता है।
(ii) इससे जनन संतति में विविधता आती है ।
(iii) नये जीवों के लिए विकास में लैंगिक जनन की मुख्य भूमिका है।
प्रश्न 5. मानव में वृषण के क्या कार्य हैं ?
उत्तर— नर मानव में अण्डाकार आकृति वाला एक बाह्य अंग है, जिसमें एक जोड़ी वृषण उदर गुहा के बाहर छोटे अण्डाकार मांसल संरचना होते हैं । यह वृषण कोश कहलाता है । वृषण में शुक्राणु तथा टेस्टोस्टेरॉन की उत्पत्ति होती है । शुक्राणु बनने के लिए वृषण कोश ताप को नियंत्रित करता है ।
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प्रश्न 6. ऋतुस्राव क्यों होता है ?
उत्तर- यदि अण्डकोशिका का निषेचन नहीं हो तो यह लगभग एक दिन तक जीवित रहती है। क्योंकि अण्डाशय प्रत्येक माह एक अण्ड का मोचन करता है । अतः निषेचित अण्ड की प्राप्ति हेतु गर्भाशय भी प्रतिमाह तैयारी करता है । इसकी अंतः भित्ति मांसल एवं स्पंजी हो जाती है । यह अण्ड के निषेचन होने की अवस्था में उसके पोषण के लिए आवश्यक है । परन्तु निषेचन न होने की अवस्था में इस परत की भी आवश्यकता नहीं रहती है । यह परत धीरे-धीरे टूट कर योनि मार्ग से रुधिर एवं म्यूकस के रूप में निष्कासित है होती है। इस चक्र में एक मास का समय लगता है इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं । यह लगभग 2 से 6 दिनों तक की होती है ।
प्रश्न 7. गर्भ निरोधन की विभिन्न विधियाँ कौन-सी है ?
उत्तर – गर्भ निरोधन की विभिन्न विधियाँ निम्नलिखित हैं :
(i) गर्भनिरोधनमेंकंडोम, मध्यपट और गर्भाशय ग्रीवा आच्छद का उपयोग किया जाता है। ये मैथुन के दौरान मादा जननांग में शुक्राणु प्रवेश को रोकता है।
(ii) स्त्रियाँ खाने की गोलियाँ तथा योनि में डालने की गोलियों का प्रयोग करती हैं। चूँकि गोलियाँ हॉर्मोन्स से बनी होती हैं जो अण्डाणु को डिम्बवाहिनी नलिका में उत्सर्जित होने से रोकती है ।
(iii) शल्य विधि में पुरुष शुक्रवाहक तथा स्त्री की डिम्बवाहिनी नली के छोटे से भाग को शल्य क्रिया द्वारा काट अथवा बाँध दिया जाता है। इसे नर नसबन्दी तथा स्त्री में स्त्री नसबन्दी कहते हैं ।
(iv) लूप अथवा कॉपर-टी को गर्भाशय में स्थापित करके भी गर्भ निरोध किया जाताहै। लेकिन इससे गर्भाशय के उत्तेजना से कुछ विपरीत प्रभाव भी हो सकते हैं।
प्रश्न 8. जनन किसी स्पीशीज की समष्टि के स्थायित्व में किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर – जीव की शारीरिक संरचना तथा डिजाइन के लिए जनन के दौरान D.N.A. प्रतिकृति का बनना अत्यन्त आवश्यक है । यह उसे विशिष्ट स्थान के योग्य बनाती है। इस कारण जनन किसी स्पीशीज की समष्टि के स्थायित्व में सहायक है ।
प्रश्न 11. गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनाने के क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर – जनसंख्या का विशाल आकार बहुत लोगों के चिन्ता का विषय है, क्योंकि जनन से ही जीव अपनी समष्टि की वृद्धि करता है । जन्मदर तथा मृत्युदर से बढ़ाती अथवा घटती है । अतः बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्रत्येक व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियंत्रण रखना होगा । इसलिए गर्भनिरोधक विधियों को अपनाना अनिवार्य हो गया है।
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