जन-जन का चेहरा एक का संपूर्ण व्‍याख्‍या | Jan-Jan Ka Chehra Ek Class 12th Solution Notes

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 12 हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ नौ ‘जन-जन का चेहरा एक (Jan-Jan Ka Chehra Ek Class 12th Solution Notes)’ को पढ़ेंगे।

Jan-Jan Ka Chehra Ek

9. जन-जन का चेहरा एक
कवि- गजानन माधव मुक्तिबोध

लेखक-परिचय
जीवनकाल : 13 नवंबर 1917-11 सितंबर 1964
जन्मस्थान : श्योपुर, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
माता-पिता : पार्वती बाई और माधवराज मुक्तिबोध

शिक्षा: उज्जैन, विदिशा, अमझरा, सरदारपुर में प्रारम्भिक शिक्षा।
1930 में उज्‍जैन के माधव कॉलेज से ग्वालियर बोर्ड की मिडिल परीक्षा मे

असफल। 1931 में सफलता प्राप्‍त,1935 में माधव कॉलेज से इंटरमीडीएट। 1937 में बी.ए में असफल, 1938 में सफलता, 1953 में नागपुर में
हिन्दी से एम.ए. किए।
अभिरुचि: अध्ययन-अध्यापन, लेखन, पत्रकारिता, राजनीति।
कृतियाँ: चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल (कविता संग्रह), काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी, नई कविता का आत्मसंघर्ष,
मुक्तिबोध रचनावली, (6 खंडों में)

9. जन-जन का चेहरा एक

चाहे जिस देश प्रांत पुर का हो
जन-जन का चेहरा एक !

प्रस्‍तुत पंक्तियाँ गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित शीर्षक कविता ‘जन-जन का चेहरा’ से ली गई हैं। कवि कहते हैं कि चाहे कोई भी व्यक्ति किसी भी देश या प्रांत का निवासी क्यों न हो, उन सबके चेहरे में समानता होती है।

एशिया की, यूरोप की अमरीका की
गलियों की धूप एक |
कष्ट-दुख संताप की
चेहरों पर पड़ी हई झरियों का रूप एक !
जोश में यों ताकत से बंधी हुई
मुठियों का एक लक्ष्य !

प्रस्‍तुत पंक्तियाँ गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित ‘जन-जन का चेहरा’ शीर्षक कविता से ये पंक्तियाँ ली गई हैं। कवि कहते हैं कि चाहे वह किसी भी देश या प्रांत का निवासी हो, समानता सभी में होती है। सूरज अपनी किरणों को समान रूप से बिखेरता है, चाहे वह एशिया, यूरोप या अमेरिका हो। कष्ट या दु:ख से ग्रस्त व्यक्ति के चेहरे पर आने वाली रेखाएं और झुर्रियाँ एक समान होती हैं। जोश या ताकत में बंधी मुठियाँ भी एक समान होती हैं और उनका लक्ष्य भी एक होता है।

पृथ्वी के गोल चारों ओर के धरातल पर
है जनता का दल एक, एक पक्ष |
जलता हुआ लाल कि भयानक सितारा एक
उद्दीपित उसका विकराल सा इशारा एक |

प्रस्‍तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। उन्होंने इन पंक्तियों में प्राणियों की समस्याओं पर विचार किए हैं। कवि कहते हैं कि सभी प्राणियों की समस्याएँ, भावनाएं समान होती हैं लेकिन इस संसार में विभिन्नता होती है। कवि यह बताना चाहते हैं कि सारे संसार में सूर्य एक होता है और अपनी रौशनी समान रूप से सभी चीजों पर बिखेरता है।

गंगा में, इरावती में, मिनाम में
अपार अकुलाती हुई, नील नदी, आमेजन,

मिसौरी में वेदना से गति हुई बहती-बहाती हुई जिंदगी की धारा एक;
प्यार का इशारा एक, क्रोध का दुद्धारा एक।

प्रस्‍तुत पंक्तियाँ कवि गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा लिखी गई कविता से उद्धृत हैं। कवि कहते हैं कि गंगा, इरावती, मिनाम, नील, आमेजन, मिसौरी जैसी नदियों में असीमित जल प्रवाह होता है। इन नदियों के जलों में कोई भी मौलिक अंतर नहीं होता है। ये नदियाँ मनुष्य को निरंतर बढ़ते हुए देखने की प्रेरणा देती हैं। इन नदियों का जल प्यार और क्रोध दोनों का संदेश देता है।

पृथ्वी का प्रसार
अपनी सेनाओं से किए हुए गिरफ्तार,
गहरी काली छायाएँ पसारकर,
खड़े हुए शत्रु का काले से पहाड़ पर
काला-काला दुर्ग एक,
जन शोषक शत्रु एक |

प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा बताती हैं कि कई दुष्ट लोगों ने इस संसार में अनेक अत्याचार किये हैं जिससे वे अपनी काली छाया को सम्पूर्ण पृथ्वी पर छिड़ा रहे हैं। ऐसे लोग मानवता के दुश्मन होते हैं और इन्होंने अपने अमानवीय कार्यों और शोषण के किले को बनाया है। इन सभी शत्रुओं ने जनता का शोषण किया है जो एक ही हैं।

आशामयी लाल-लाल किरणों से अंधकार
चीरता सा मित्र का स्वर्ग एक;
जन-जन का मित्र एक।

प्रस्‍तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा से ली गई हैं जिसका शीर्षक है “जन-जन का चेहरा” और जिसके रचयिता मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। कवि कहते हैं कि वर्तमान समय में आर्थिक विषमता और शोषण का अंधकार छाया हुआ है। लेकिन इस अंधकार को समाजवाद द्वारा दूर किया जा सकता है जिससे एक आशामयी लाल किरण होगी। कवि कहते हैं कि जब ये अंधकार समाप्त होंगे तो सारी दुनिया में शांति की स्थिति हो जाएगी जैसे स्वर्ग में होती है।

विराट प्रकाश एक क्रांति की ज्वाला एक
धड़कते वृक्षों में है सत्य का उजाला एक
लाख-लाख पैरों की मोच में है वेदना का तार एक,
हिये में हिम्मत का सितारा एक |
चाहे जिस देश प्रांत पर का हो
जन-जन का चेहरा एक |

प्रस्‍तुत पंक्तियाँ गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा लिखी गई कविता से उद्धृत हैं। कवि कहते हैं कि प्रकाश सभी जगह एक ही रूप में होता है और क्रांति की ज्वाला भी सभी जगह एक ही होती है। हर व्यक्ति के हृदय में एक ही तरह का सत्य होता है और लाखों लोगों के पैरों में एक ही तरह की मोच महसूस होती है। सभी के हृदय में शोषण के खिलाफ एक ही तरह का साहस होता है।

एशिया के, यूरोप के, अमरीका के
भिन्न-भिन्न वास स्थान
भौगोलिक, ऐतिहासिक बंधनो के बावजूद,
सभी ओर हिंदुस्तान सभी ओर हिंदुस्तान |

प्रस्‍तुत पंक्तियाँ गजानन माधव मुक्तिबोध ने एक शीर्षक कविता से यह अभिव्यक्त किया है कि भौगोलिक और ऐतिहासिक विशिष्टताओं के बावजूद, भिन्न-भिन्न संस्कृतियों वाले एशिया, यूरोप और अमेरिका के लोग भारत की जीवन शैली से प्रभावित होते हैं।

सभी ओर बहनें है सभी ओर भाई है
सभी ओर कन्हैया ने गायें चराई है
जिंदगी की मस्ती की अकुलाती भोर एक
बंसी की धुन सभी ओर एक।

प्रस्‍तुत पंक्तियाँ का शीर्षक एक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि भारत की संस्कृति में हर जगह भाई-बहन जैसा प्रेम होता है। यहाँ हर जगह भगवान कृष्ण की मूर्ति विराजमान है। उन्होंने यहाँ सभी जगह गाय चरायी हैं। यहाँ जीवन में मस्ती भरी हुई है। सभी ओर कृष्ण के बंसी की धुन सुनाई देती है। Jan-Jan Ka Chehra Ek

दानव दुरात्मा एक,
मानव की आत्मा एक
शोषक और खूनी और चोर एक
जन-जन के शीर्ष पर,
शोषण का खड्ग अति घोर एक
दुनिया के हिस्सों में चारों ओर
जन-जन का युद्ध एक

प्रस्‍तुत पंक्तियाँ एक कविता से ली गई हैं जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। कवि यह कहते हैं कि पूरी दुनिया में दानव और दुष्ट आत्माएं एक जैसी होती हैं। शोषक, खूनी और चोर भी सभी एक ही प्रकार के होते हैं तथा दुनिया के हर कोने में दुरात्माओं, चोरों से लड़ना भी एक जैसा होता है।

मस्तक की महिमा
व अंतर की ऊष्मा से उठती है ज्वाला अति क्रुद्ध एक।
संग्राम का घोष एक,
जीवन का संतोष एक |

प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा है, जो एक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि सभी लोगों का मस्तिष्क एक जैसा होता है और उनके हृदय की ताक़त भी एक सी होती है। उनके अंदर क्रोध की ज्वाला भी एक सी होती है।

क्रांति का, निर्माण का, विजय का चेहरा एक,
चाहे जिस देश, प्रांत, पुर का हो
जन-जन का चेहरा एक !

प्रस्‍तुत पंक्तियाँ एक शीर्षक कविता से ली गई हैं जिसके रचयिता मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। कवि कहते हैं कि क्रांति निर्माण और विजय के लिए संघर्ष एक जैसा होता है, चाहे वह किसी देश, किसी भी प्रांत और किसी भी गाँव का हो। इस संघर्ष का मूल स्वर आम आदमी के शोषण के खिलाफ लड़ाई होती है जो एक ही होता है, चाहे वह कहीं भी हो।

Jan-Jan Ka Chehra Ek

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