इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 10 इतिहास के पाठ 3 ‘ हिन्द-चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन (Hind Chin me Rashtravad Class 10 Solution Notes)’ के व्याख्या और सभी ऑब्जेक्टिव प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे। Class 10 Solution Notes
3. हिन्द-चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन
Hind Chin me Rashtravad Class 10 Solution Notes
हिन्द-चीन दक्षिण-पूर्व एशिया में फैला एक प्रायद्वीपीय क्षेत्र, जिसका क्षेत्रफल 2.80 लाख वर्ग कि.मी. है, जिसमें आज के वियतनाम, लाओस और कंबोडिया के क्षेत्र आते हैं।
वियतनाम के तोंकिन एवं अन्नाम कई शताब्दीयों तक चीन के कब्जे में रहा तथा दूसरी तरफ लाओस-कम्बोडिया पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव था।
चौथी शताब्दी में कम्बुज भारतीय संस्कृति का प्रधान केन्द्र था।
12वीं शताब्दी में राजा सुर्यवर्मा द्वितीया ने अंकोरवाट का मंदिर का निर्माण करवाया था, परन्तु 16वीं शताब्दी में कंबुज का पतन हो गया था।
इस प्रकार कुछ देशों पर चीन एवं कुछ देशों पर हिन्दुस्तान के सांस्कृतिक प्रभाव के कारण ही यह हिन्द-चीन के नाम से जाना गया।
व्यापारिक कंपनियों का आगमन और फ्रांसीसी प्रभुत्व
हिन्द-चीन में पहुँचने वाले प्रथम व्यापारी पूर्तगाली थे। उसके बाद डच, इंगलैंड तथा फ्रांस आया।
फ्रांस के अलावा कोई भी देश हिन्द-चीन में अपना रूचि नहीं दिखाया।
20वीं शताब्दी तक सम्पूर्ण हिन्द-चीन पर फ्रांस का अधिकार हो गया।
फ्रांस द्वारा उपनिवेश स्थापना के उद्देश्य
फ्रांस द्वारा हिन्द-चीन को अपना उपनिवेश बनाने का उद्देश्य डच एवं ब्रिटिश कंपनियों के व्यापारिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना था।
उद्योगों के लिए कच्चे माल उपनिवेश से ही प्राप्त होते थे तथा तैयार वस्तुओं को बेचने के लिए उपनिवेश एक बाजार का रूप था।
एकतरफा अनुबंध व्यवस्था– एक तरफा अनुबंध व्यवस्था एक तरह की बंधुआ मजदूरी थी। वहाँ मजदूरों को कोई अधिकार नहीं था, जबकि मालिक को असिमित अधिकार था।
हिन्द-चीन में बसने वाले फ्रांसीसी को कोलोन कहे जाते थे।
हिन्द-चीन में राष्ट्रीयता का विकास
हिन्द-चीन में फ्रांसीसी उपनिवेशवाद को समय-समय पर विद्रोहों का सामना करना पड़ रहा था, परन्तु 20वीं शताब्दी के शुरू में यह और मुखर होने लगा। 1930 ई. में फान-बोई-चाऊ ने 'दुई तान होई' नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की जिसके नेता कुआंग दें थे। फान बोई चाऊ ने 'द हिस्ट्री ऑफ लॉस ऑफ वियतनाम' लिखकर हलचल पैदा कर दी। सन्यात सेन के नेतृत्व में चीन में सत्ता परिवर्तन ने हिन्द-चीन के छात्रों ने प्रेरित होकर वियेतनाम कुवान फुक होई (वियतनाम मुक्ति एशोसिएशन) की स्थापना की। 1914 ई. में देशभक्तों ने 'वियतनामी राष्ट्रवादी दल' नामक संगठन बनाया। लेकिन फ्रांसीसी सरकार ने इसे कुचल डाला। दिन-प्रतिदिन हिन्द-चीन के लोगों की स्थिति दयनीय होती जा रही थी। उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद कुछ उदारवादी नीतियाँ अपनाई गई। कोचीन-चीन के लिए एक प्रतिनिधि सभा का गठन किया गया और उसके सदस्यों के निर्वाचन की व्यवस्था की गयी थी। 1917 ई० में 'न्यूगन आई क्वोक' (हो-ची मिन्ह) नामक एक वियतनामी छात्र ने पेरिस मे ही साम्यवादियो का एक गुट बनाया। हो-ची मिन्ह शिक्षा प्राप्त करने मास्को गया और साम्यवाद से प्रेरित होकर 1925 में 'वियतनामी क्रांतिकारी दल' की गठन किया। 1930 के दशक की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने भी राष्ट्रवाद के विकास में योगदान दिया।
द्वितीय विश्व युद्ध और वियतनामी स्वतंत्रता
जून 1940 ई० में फ्रांस जर्मनी से हार गया और फ्रांस में जर्मन समर्थित सत्ता कायम हो गयी।
उसके बाद जापान ने पूरे हिन्द-चीन पर अपना राजनीतिक प्रभुत्व जमा लिया।
हो-ची-मिन्ह के नेतृत्व में देश भर के कार्यकर्ताओं ने ‘वियतमिन्ह’ (वियतनाम स्वतंत्रता लीग) की स्थापना कर पीड़ित किसानों, बुद्धिजीवियों, आतंकित व्यापारियों सभी को शामिल कर छापामार युद्ध नीति का अवलंबन (अपनाना) किया।
1944 में फ्रांस जर्मनी के अधिपत्य से निकल गया तथा जापान पर परमाणु हमला के पश्चात् जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया।
इस स्थिति में जापान की सेनाएँ वियतनाम से निकलने लगी और फ्रांस के पास इतनी शक्ति नहीं थी कि खुद को पुनः हिन्द-चीन में स्थापित रख सके।
इसका लाभ उठाते हुए वियतनाम के राष्ट्रवादियों ने वियतमिन्ह के नेतृत्व में लोकतंत्रीय गणराज्य की स्थापना 2 सितम्बर 1945 ई. को करते हुए वियतनाम की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी, इस सरकार का प्रधान हो-ची-मिन्ह को बनाया गया।
Hind Chin me Rashtravad Class 10 Solution Notes
हिन्द चीन के प्रति फ्रांसीसी नीति
फ्रांस हिन्द-चीन में अपने डूबे सम्राज्य को बचाना चाहता था। अतः उसने एक नये औपनिवेशिक तंत्र की योजना बनाई। फ्रांस ने घोषणा की कि 'फ्रांस के विशाल सम्राज्य को एक यूनियन बना दिया जाएगा, जिसमें अधिनस्थ उपनिवेश शामिल रहेगें'। इस महासंघ का एक अंग हिन्द-चीन भी होगा। जापानी सेनाओ के हटते ही, फ्रांसीसी सेना जैसे ही सैगान पहुँची वियतनामी छापामारो ने भयंकर युद्ध किया और फ्रांसीसी सेना सैगान में ही फंसी रही। अंततः 6 मार्च 1946 को हनोई-समझौता फ्रांस एवं वियतनाम के बीच हुआ जिसके तहत फ्रांस ने वियतनाम को गणराज्य के रूप में स्वतंत्र इकाई माना, साथ ही माना गया कि यह गणराज्य हिन्द चीन संघ में रहेगा और हिन्द चीन संघ फ्रांसीसी यूनियन में रहेगा। फ्रांस ने कोचीन-चीन में एक पृथक सरकार स्थापित कर लिया जिससे हनोई समझौता टूट गया। अब तक हो ची मिन्ह की ताकत इतनी नहीं हुई थी कि फ्रांसीसी सेना का प्रत्यक्ष मुकाबला कर सके। अतः पुनः गुरिल्ला युद्ध शुरू हो गया। इसी क्रम में गुरिल्ला सैनिकों ने दिएन-विएन-फु पर भयंकर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में फ्रांस बुरी तरह हार गया। फ्रांस के लगभग 16000 सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा। इस तरह दिएन-विएन-फु पर साम्यवादियों का अधिकार हो गया।
अमेरकी हस्तक्षेप
अमेरिका जो अब तक फ्रांस का समर्थन कर रहा था, ने हिन्द-चीन में हस्तक्षेप की नीति अपनायी। साम्यवादियों के विरोध में इसकी घोषणा भी कर दी।
1954 में हिन्द-चीन समस्या पर एक वार्ता बुलाया गया, जिसे जेनेवा समझौता के नाम से जाना जाता है।
जेनेवा समझौता ने पूरे वियतनाम को दो हिस्सों में बाँट दिया।
हनोई नदी से सटे उत्तर के क्षेत्र उत्तरी वियतनाम को हो-ची-मिन्ह को और उससे दक्षिण में दक्षिणी वियतनाम अमेरिका समर्थित सरकार को दे दिया।
जेनेवा समझौता के तहत लाओस और कम्बोडिया को वैध राजतंत्र के रूप में स्वीकार किया गया।
लाओस में गृह-युद्ध
जेनेवा समझौता के तहत लाओस और कम्बोडिया को पूर्ण स्वतंत्र देश मान लिया गया।
जेनेवा समझौता के क्रियान्वयन की देखभाल करने के लिए एक त्रिसदस्यीय अंतराष्ट्रीय निगरानी आयोग का गठन किया गया, जिसके सदस्य भारत, कनाडा एवं पोलैण्ड थे।
लाओस में तीन राजकुमारों के राजनीतिक वर्चस्व के संघर्ष के कारण अस्थिरता फैल गई।
25 दिसम्बर 1955 को लाओस में चुनाव के बाद राष्ट्रीय सरकार का गठन हुआ और सुवन्न फूमा के नेतृत्व में सरकार बनीं।
लाओस में तीन भाईयों के बीच सत्ता को लेकर संघर्ष चालु हो गया तथा भयंकर गृहयुद्ध शुरू हो गया।
लाओस के गृह युद्ध में अमेरिका-रूस की परोक्ष सहभागिता के कारण विश्वशांति को खतरे में डाल दिया। तब भारत ने जेनेवा समझौता के अनुरूप अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण आयोग को पुनर्जीवित करने की मांग उठायी।
अंततः इस समस्या पर 14 राष्ट्रों का एक सम्मेलन बुलाना तय हुआ, जिसमें लाओस के तीनों पक्षों की भागीदारी पर रूस अमेरिका भी सहमत थे। मई 1961 में यह सम्मेलन हुआ जिसमें सभी राजकुमारों ने संयुक्त मंत्रिमण्डल के गठन पर सहमति प्रदान की और मंत्रिमण्डल भी बना, परन्तु अमेरिकी षड्यंत्र के कारण लाओस के विदेश मंत्री की हत्या हो गयी और गृह युद्ध पुनः शुरू हो गया।
अमेरिका लाओस में साम्यवादी प्रसार नहीं चाहता था, अतः चुनाव द्वारा सुवन्न फुमा को प्रधानमंत्री बनाया गया और सुफन्न बोंग उप प्रधानमंत्री बना।
इससे असंतुष्ट पाथेट लाओ ने सन् 1970 में लाओस पर आक्रमण कर जार्स के मैदान पर कब्जा कर लिया।
हालांकि अमेरिका ने इस युद्ध में जम कर बमबारी किया परन्तु पाथेट लाओ के आक्रमण को रोका नहीं जा सका।
रूस लाओस पर आक्रमण और उसके बिगड़ती स्थिति की जिम्मेदारी अमेरिका पर सौंपा।
अमेरिका के खुल कर युद्ध में आ जाने से यह जटिल स्थिति उत्पन्न हुई थी।
1971 में हजारों दक्षिणी वियतनामी सैनिकों ने लाओस में प्रवेश किया उनके साथ अमेरिकी सैनिक, युद्धक विमान एवं बमवर्षक हेलिकाप्टर भी थे।
इनका उद्देश्य हो-ची-मिन्ह मार्ग पर कब्जा करना था। पाथेट लाओ ने रूस और ब्रिटेन से अनुरोध किया कि वे अमेरिका पर दबाव डाल कर उन्हें रोकें।
परन्तु चीन ने अमेरिका को धमकी दी। पहले अमेरिका को लगा कि वह युद्ध जीत लेगा, परन्तु हो-ची-मिन्ह मार्ग क्षेत्र पर जा कर उसकी सेनाएँ फंस गयी। लाओस के प्रबल प्रतिरोध के कारण उसके लिए वापस लौटना ही मात्र एक उपाय था। इस तरह अमेरिका अपने आक्रमण में वामपंथ के प्रसार को रोक नहीं पाया।
कंबोडियायी संकट :
सन् 1954 ई० में स्वतंत्र राज्य बनने के बाद कम्बोडिया में संवैधानिक राजतंत्र को स्वीकार कर राजकुमार नरोत्तम सिंहानुक को शासक माना गया।
नरोत्तम सिंहानुक 1954 से ही कम्बोडिया को गुटनिरपेक्षता एवं तटस्थता की नीति पर चलाना शुरू का दिया था।
अमेरिका कंबोडिया पर अपना प्रभाव चाहता था। वह थाइलैण्ड को उकसाकर कंबोडिया को तंग करना चाहता था।
जिसके कारण नरोत्तम सिंहानुक ने अमेरिका से सारे रिश्ते तोड़ दिए और अमेरिका से किसी प्रकार का मदद लेने से इंकार कर दिया।
यह बात अमेरिका के लिए अपमान जनक थी।
मई 1965 में अमेरिका ने वियतनाम के साथ कम्बोडिया के सीमावर्ती गांवो पर आक्रमण कर दिया।
आगे चलकर सन् 1969 में अमेरिका ने कम्बोडिया सीमा क्षेत्र में जहर की वर्षा हवाई जहाज से करवा दी, जिससे लगभग 40 हजार एकड़ भूमि की रबर की फसल नष्ट हो गयी।
सिंहानुक ने मुआवजे की मांग अमेरिका से की एवं रूस की ओर झुकाव दिखाते हुए पूर्वी जर्मनी से राजनयिक सम्बंध बढ़ाने शुरू किये।
तत्कालीन दो गुटिय विश्व व्यवस्था में पूँजीवादी अमेरिका यह नहीं चाहता था कि कम्बोडिया साम्यवादी देशों के प्रति सहानुभूति रखें।
अमेरिकी षड्यंत्र के कारण नरोत्तम सिंहानुक के पद से हटा दिया गया तथा अमेरिका समर्थित जेनरल लोन नोल के नेतृत्व में सरकार बना।
नरोत्तम सिंहानुक ने पेकिंग में निर्वासित सरकार का गठन कर जनरल लोन नोल की सरकार को अवैध घोषित कर दिया। साथ ही राष्ट्रीय संसद को भंग कर दिया और जनता से मौजूदा सरकार को अपदस्थ करने की अपील की।
अप्रैल 1970 से सिंहानुक ने नयी सरकार के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया। नरोत्तम सिंहानुक की सेना विजयी होती हुयी। राजधानी नामपेन्ह की ओर बढ़ रही थी। अमेरिका ने तुरंत इसमें हस्तक्षेप किया। दक्षिणी वियतनाम से अमेरिकी फौज कम्बोडिया में प्रवेश कर गयी और व्यापक संघर्ष शुरू हो गया। यह युद्ध बडा ही भयंकर हो गया।
स्थिति को भांपते हुए इन्डोनेशिया ने एशियायी देशों का सम्मेलन बुलाने का प्रस्ताव रखा। 16 मई 1970 को जकार्ता में एक सम्मेलन बुलाया गया। यद्यपि यह सम्मेलन सफल रहा परन्तु कम्बोडिया की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया।
कम्बोडियायी छापामारों, अमेरिकी सेना के बीच युद्धों, बमबारी नृशंश हत्याओं के इस दौर में ही 9 अक्टूबर 1970 को कम्बोडिया को गणराज्य घोषित किया गया। परन्तु सिंहानुक एव लोन नोल की सेनाओ में संघर्ष चलता रहा।
पांच वर्ष बाद सिंहानुक ने निर्णायक युद्ध का ऐलान किया और उनकी लाल खुमेरी सेना विजय करती आगे बढ़ती गयी अंततः लोन नोल को भागना पड़ा।
अपै्रल 1975 में कम्बोडियायी गृह युद्ध समाप्त हो गया। नरोत्तम सिंहानुक पुनः राष्ट्राध्यक्ष बने परन्तु 1978 में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। अब कम्बोडिया का नाम बदल कर कम्पुचिया कर दिया गया।
वियतनामी गृह युद्ध और अमेरिकाः
जेनेवा समझौता के तहत वियतनाम को दो भागों उत्तरी वियतनाम तथा दक्षिणी वियतनाम में बाँट दिया गया था। उत्तरी वियतनाम में साम्यवाद समर्थित हो-ची मिन्ह और दक्षिणी वियतनाम में अमेरिका समर्थित बाओदायी की सरकार थी।
जेनेवा समझौता के तहत कहा गया था कि 1956 तक चुनाव द्वारा वियतनाम का एकीकरण किया जायेगा। लेकिन नहीं किया गया।
1960 में ‘वियतकांग’ (राष्ट्रीय मुक्ति सेना) का गठन कर अपने सरकार के विरुद्ध हिंसात्मक संघर्ष जारी हो गया।
अमेरिका ने 1961 में साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए ‘शांति के खतरा’ नाम से श्वेत पत्र जारी कर दिया और अपने 4000 सैनिकों को दक्षिणी वियतनाम में भेज दिया।
अमेरिका उत्तरी वियतनाम पर आक्रमण कर उसके सैनिक अड्डे तबाह कर दिया। इस युद्ध में हथियारों, टैंकों एवं बमवर्षक विमानों का बहुत प्रयोग किया गया।
रासायनिक हथियारों नापाम, एजेन्ट-आरेंज एवं फास्फोरस बमों का जमकर इस्तेमाल किया।
यह युद्ध उत्तरी वियतनाम के साथ-साथ वियतकांग एवं वियतकांग समर्थक दक्षिणी वियतनामी जनता सभी से लड़ा गया था।
इस युद्ध में निर्दोष ग्रामीणों की हत्या कर दी जाती थी, फिर पूरे गाँव को आग के हवाले कर दिया जाता था।
इस युद्ध में महिलाएँ भी हाथों में बंदुक लिए अमेरिका से जमकर मुकाबला करने लगी।
प्रसिद्ध दार्शनिक रसेल ने अदालत लगाकर अमेरिका को वियतनाम युद्ध के लिए दोषी ठहराया।
अमेरिका दक्षिणी वियतनाम को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था, वहीं वियतनामी अपने अस्तित्व और राष्ट्र के लिए लड़ रहे थे।
अमेरिका हो-ची मिन्ह मार्ग पर सैकड़ों पर आक्रमण कर उसे नष्ट कर दिया। परन्तु राष्ट्रवादी उसका तुरंत मरम्मत कर लेते थे।
इस मार्ग पर नियंत्रण करने के लिए अमेरिका लाओस और कंबोडिया पर भी आक्रमण कर दिया।
तीन तरफा युद्ध में पड़कर फंस गया और उसे वापस होना पड़ा।
अमेरिका शांति वार्ता चाहता था, लेकिन अपनी शर्तों पर। जिसके कारण 1968 में पेरिस के शांति वार्ता सफल नहीं हो सकी।
अमेरिकी असफलता और वियतनाम एकीकरणः
अब हॉलिबुड द्वारा अमेरिका के वियतनाम युद्ध को जायज ठहराने वाली फिल्मों के स्थान पर अमेरिका के ही अत्याचार पर फिल्में बनने लगी। दूसरी तरफ निक्सन अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल कर नया राष्ट्रपति बना।
अमेरिकी शर्ते
अमेरिकी सेनाए उस क्षेत्र में रहेगी
जब तब वियतकांग संघर्ष करेगा एवं दक्षिणी वियतनाम में आतंक मचाएगा बमबारी जारी रहेगा।
दक्षिण वियतनाम की स्वतंत्रता
वियतनाम समस्या का जल्द समाधान की जिम्मेवारी उस पर सौंपी गयी। अन्तरराष्ट्रीय दबाव बढ़ता ही जा रहा था। इसी समय ‘माई ली गाँव’ की एक घटना प्रकाश में आयी। अमेरिकी सेना की आलोचना पूरे विश्व में होने लगी। तब राष्ट्रपति निकसन ने शांति के लिए पाँच सूत्री योजना की घोषणा की।
(1) हिन्द-चीन की सभी सेनाए युद्ध बंद कर यथा स्थान पर रहे।
(2) युद्ध विराम की देख-रेख अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक करेगे।
(3) इस दौरान कोई देश अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयत्न नही करेगा
(4) युद्ध विराम के दौरान सभी तरह की लड़ाईयाँ बंद रहेंगी
(5) युद्ध विराम का अंतिम लक्ष्य समूचे हिन्द चीन में संघर्ष का अंत होना चाहिए।
परन्तु इस शांति प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया। अमेरिकी सेनाए पुनः बमबारी शुरू कर दी। लेकिन अमेरिका अब जान चुका था कि उसे अपनी सेनाएं वापस बुलानी ही पड़ेगी। निक्सन ने पुनः आठ सुत्री योजना रखी। वियतनामियों ने इसे खारिज कर दिया। अब अमेरिका चीन को अपने पक्ष में करने में लग गया। 24 अक्टूबर 1972 को वियतकांग, उतरी वियतनाम, अमेरिका एवं दक्षिणी वियतनाम में समझौता तय हो गया, परन्तु दक्षिणी वियतनाम ने आपत्ति जताई और पुनः वार्ता के लिए आग्रह किया। वियतकांग ने इसे अस्वीकार कर दिया। इस बार इतने बम गिराए गए जिनकी कुल विध्वंसक शक्ति हिरोशिमा में प्रयुक्त परमाणु बम से ज्यादा आंकी गयी।
हनोई भी इस बमवारी से ध्वस्त हो गया, लेकिन वियतनामी डटे रहे। अंततः 27 फरवरी 1973 को पेरिस में वियतनाम युद्ध के समाप्ती के समझौते पर हस्ताक्षर हो गया, समझौते की मुख्य बाते थीं युद्ध समाप्ति के 60 दिनो के अंदर अमेरिकी सेना वापस हो जाएगी, उतर और दक्षिण वियतनाम परस्पर सलाह कर के एकीकरण का मार्ग खोजेंगे, अमेरिका वियतनाम को असीमित आर्थिक सहायता देगा।
इस तरह से अमेरिका के साथ चला आ रहा युद्ध समाप्त हो गया एवं अप्रैल, 1975 में उत्तरी एवं दक्षिणी वियतनाम का एकीकरण हो गया।
इस प्रकार सात दशकों से ज्यादा चलने वाला यह अमेरिका वियतनाम युद्ध समाप्त हो गया।
इस युद्ध में 9855 करोड़ डालर खर्च हुए। सर्वधिक व्यय अमेरिका का था। उसके 56000 से अधिक सैनिक मारे गए लगभग 3 लाख सैनिक घायल हुए। दक्षिणी वियतनाम के 18000 सैनिक मारे गए। अमेरिका के 4800 हेलिकाप्टर एव 3600 अनगिनित टैंक नष्ट हो गए।
इन सारी घटनाओं में के कारण धन जन की बर्बादी के अलावे अमेरिकी शाख को भी गहरा आघात पहुँचा।
पूरे हिन्दी चीन में वह बुरी तरह असफल रहा। अंततः उसे अपनी सेनाएं हिन्दी-चीन से हटानी पड़ी और सभी देशो की संप्रभुता एवं अखण्डता को स्वीकार करना पड़ा।
माई-ली-गाँव
दक्षिणी वियतनाम में एक गाँव था जहाँ के लोगों को वियतकांग समर्थक मान अमेरिकी सेना ने पूरे गांव को घेर कर पुरूषों को मार दिया, औरतों-बच्चियों को बंधक बनाकर कई दिनों तक सामूहिक बलात्कार किया, फिर उन्हें भी मार कर पूरे गांव में आग लगा दिया। लाशों के बीच दबा एक बूढ़ा जिन्दा बच गया था जिसने इस घटना को उजागर किया।
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3. हिन्द चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. एक तरफा अनुबंध व्यवस्था क्या थी ?
उत्तर :- एक तरफा अनुबंध व्यवस्था एक तरह की बंधुआ मजदूरी थी। वहां मजदूर का कोई अधिकार नहीं था, जबकि मालिक को असीमित अधिकार प्राप्त था।
2. बाओदायी कौन था?
उत्तर :- बओदायी एक अन्नान का शासक था। बाद में फ्रांस के समर्थन से दक्षिणी वियतनाम का शासन बना।
3. हिंद-चीन का अर्थ क्या है ?
उत्तर :- हिंद-चीन के वियतनाम, लाओस और कंबोडिया के क्षेत्र है। उत्तरी सीमा में म्यांमार एवं चीन को छूती है। दक्षिणी में चीन सागर और पश्चिमी म्यांमार क्षेत्र पड़ते हैं।
4. जेनेवा समझौता कब और किसके बीच हुआ?
उत्तर :- 1954 ईस्वी में जेनेवा में हिंद-चीन में सम्मेलन बुलाया गया। जिसे जेनेवा समझौता कहा जाता है। जेनेवा समझौता ने पूरे वियतनाम को दो हिस्सों में बांट दिया। हनोई नदी से सटे उत्तर का क्षेत्र उत्तरी वियतनाम और उससे दक्षिणी में दक्षिण वियतनाम अमेरिका समर्थित सरकार को दे दिया।
5. होआ-होआ आंदोलन की चर्चा करें ।
उत्तर :- होआ-होआ एक बौद्धिक धार्मिक क्रांतिकारी आंदोलन था। जो 1939 में शुरू हुआ था, जिसके नेता हुईन्ह फु-सो था। क्रांतिकारी अग्रवादी घटनाओं को भी अंजाम देते थे, जिसमें आत्मदाह तक भी शामिल होता था।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. हिंद-चीन में फ्रांसीसी प्रसार का वर्णन करें।
उत्तर :- 17वीं शताब्दी में फ्रांसीसी व्यापारी हिंद-चीन गए। 1747 ई० के बाद से फ्रांस ने रुचि लेने लगा। 1787 ई. में कोचीन-चीन का शासक के साथ उसे संधि का मौका मिला 19वीं शताब्दी में कोचीन-चीन में फ्रांसीसी के खिलाफ उग्र आंदोलन हो रहे थे। 1862 ईस्वी में अन्नाम को बल पूर्वक संधि किया। 1783 में तोकिन में फ्रांसीसी सेना का प्रवेश हुआ। 20वीं शताब्दी में हिंद-चीन फ्रांस की अधीनता में आ गया।
2. रासायनिक हथियारों एवं एजेंट ऑरेंट का वर्णन करें।
उत्तर :- रासायनिक हथियार :- नापाम एक तरह का ऑर्गेनिक कम्पाउंड है। जो अग्नि बमों में गैसोलीन के साथ मिलकर एक ऐसा मिश्रण तैयार करता था जो त्वचा से चिपक जाता और जलता रहता था। इसका व्यापक पैमाने पर वियतनाम में प्रयोग करता था।
एजेंट-ओरेंज :- यह एक ऐसा जहर था जिससे पेड़ों की पत्तियाँ झुलस जाती थी। पेड़ मर जाता था। इसका इस्तेमाल जंगलों को खत्म करने के लिए किया जाता था।
3. हो-ची मिन्ह के विषय में संक्षिप्त में लिखें।
उत्तर :- 1917 ईस्वी में ‘न्यूगन आई क्योक’ नामक एक वियतनामी छात्र ने पेरिस में समयवादी का एक गुट बनाया। हो-ची-मिन्ह शिक्षा प्राप्त करने के लिए मास्को गया। 1925 में ‘वियतनामी क्रांतिकारी दल’ का गठन किया। कार्यकर्ताओं के सैनिक प्रशिक्षण की व्यवस्था कर ली। 1930 में वियतनाम के बिखरे राष्ट्रवादी गुटों को एक जुट कर ‘बियतनाम कांग सान दे’ वियतनाम कम्युनिस्ट पार्टी का स्थापना की थी।
4. हो-ची मिन्ह मार्ग क्या हैं? बतावें।
उत्तर :- हो-ची-मिन्ह मार्ग हनोई से चलकर लाओस, कंबोडिया के सीमा क्षेत्र से गुजरता हुआ दक्षिणी वियतनाम तक जाता था। जिससे कच्ची-पक्की सड़कें निकलकर जुटी हुई थी। इस मार्ग पर नियंत्रण करने से अमेरिका, लाओस और कंबोडिया पर आक्रमण कर दिया था। तीन तरफा संघर्ष में फंस कर उसे वापस होना पड़ा था।
4. अमेरिका हिंद-चीन में कैसे घुसा चर्चा करें।
उत्तर :- अमेरिका हिंद चीन में फ्रांस के बहाने घुसा और धीरे-धीरे साम्यवादीयों के विरोध की नीति अपनाई। मई 1954 में जिनेवा में हिंद चीन में सम्मेलन बुलाया गया जिसे जेनेवा समझौता के नाम से जाना जाता है। जिनेवा समझौता ने पूरे वियतनाम को दो हिस्सों में बांटा उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम। उत्तरी वियतनाम में साम्यवादी सरकार बनी। जबकि दक्षिणी वियतनाम में अमेरिका पूँजीवादी सरकार बायोदायी के नेतृत्व में बनी।
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. हिंद चीन उपनिवेश स्थापना का उद्देश्य क्या था?
उत्तर :- हिंदी चीन को अपना उपनिवेश बनाने का उद्देश्य डच तथा ब्रिटिश कंपनियों के व्यापारिक का सामना करना था। भारत में फ्रांसीसी कमजोर पड़ रहे थे। चीन में उनके व्यापारिक रूप से इंग्लैंड से था। हिंद चीन क्षेत्र के सुरक्षित समझकर दोनों तरफ भारत एवं चीन को कठिन परिस्थितियों में संभाल सकते थे। दूसरी तरफ की आपूर्ति उपनिवेश स्वागत होती थी। वस्तुओ के लिए बाजार भी होता था।
2. माई ली गाँव की घटना क्या थी? इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :- दक्षिणी बियतनाम में एक गाँव था जहाँ के लोगों को बियतकांग समर्थक मान अमेरिकी सेना ने पुरे गाँव को घेर कर पुरुषो को मार डाला, औरतों, बच्चियों को बंधक बनाकर कई दिनों तक सामूहिक बलत्कार किया, फिर उन्हें भी मार कर पुरे गाँव में आग लगा दिया। लाशो के बिच दबा एक बूढ़ा जिन्दा बच गया था जिसने इस घटना को उजागर किया।
अंतरास्ट्रीय दबाव बढ़ता ही जा रहा था। उसी समय माई ली गाँव की घटना प्रकाश में आयी अमेरिका सेना की आलोचना पुरे विश्व में होने लगा।
3. राष्ट्पति निक्सन के हिन्द-चीन में शांति के सम्बन्ध में पांच सूत्री योजना क्या थी? इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :- राष्ट्पति निक्सन के हिन्द – चीन के सम्बन्ध में पाँच सूत्री योजना निम्नलिखित हैं।
(i) हिन्द – चीन की सभी सेनाये युद्ध बढ़कर यथा स्थापना पर रहे।
(ii) युद्ध विराम की देख – रेख अंतरास्ट्रीय पर्यवेक्षक करेंगे।
(iii) कोई भी देश अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयत्न नहीं करेगा।
(iv) युद्ध विराम के सभी तरह के लड़ाईया बंद रहेगी।
(v) युद्ध विराम का अंतिम लक्ष्य समूचे हिन्द – चीन में संघर्ष का अंत हुआ।
24 अक्टूबर 1972 को बियतनाम उत्तरी बियतनाम, अमेरिका एवं दक्षणी बियतनाम मेरे समझौता हुआ।27 फरवरी 1973 को पेरिस में वियतनाम युद्ध में समझौता हो गया। अप्रैल 1975 में उत्तरी एवं दक्षणी बियतनाम का अकीकारण हो गया।
4. फ्रांसीसी शोषण के साथ-साथ उसके द्वारा किए गए सकारात्मक कार्यों की समीक्षा करें।
उत्तर :- फ्रैंसिसियो ने प्रारंभिक शोषण व्यापारिक नगरों एवं बंदरगाहों से शुरू किया था। उसके बाद भीतरी ग्रामीण के इलाकों में किसानों का शोषण किया,सर्व प्रथम फ्रांसीसीयो ने शोषण के साथ-साथ कृषि की उत्पादकता बढ़ाने के लिए नहरों एवं जल निकासी का प्रबंध किया। दलदली भूमि जंगलो आदि में कृषि क्षेत्र को बढ़ाया जाने लगा। 1931 तक वियतनाम विश्व का तीसरा बड़ा चावल निर्यातक देश बन गया। रबड़, बागानो, फर्मो, खानो में मजदूर एकतरफा काम किया जाता था एक विशाल रेल नेटवर्क एवं सड़क का भी जाल सा बिछ गया। किसानो एवं मजदूरों का जीवन स्तर गिरता जा रहा था क्योंकि सारी व्यवस्था शोषण – मुलक थी।
5. हिंद चीन में राष्ट्रवाद के विकास का वर्णन करें।
उत्तर :- हिंद चीन में फ्रांसीसी उपनिवेशवाद को समय-समय पर विद्रोह का सामना किया। 20वी शताब्दी के शुरू में और मुखर होने लगा। फान बोई चाऊ ने ‘द हिस्ट्री ऑफ द लॉस ऑफ वियतनाम ‘ लिखा और हलचल कर दिया।
1905 ई. में जापान द्वारा रूस को हराया फ्रांसीसी विचारकों के विचार भी उद्देलिट कर रहे थे। इसी समय एक दूसरे से राष्ट्रवादी नेता ‘फान चु चीन’ हुए राष्ट्रवादी आंदोलन के राजतंत्रिय स्वरूप को गणतंत्रवादी बनाने का प्रयास किया।
हिंद चीन के राष्ट्रवाद का विकास कोचीन – चीन और अन्नाम लेकिन जैसे शहरों तक ही सीमित था। 1914 ईस्वी में ही देश भक्तों ने ‘एक वियतनामी राष्ट्रवादी दल’ नामक संगठन बनाया क्रूद्ध होकर 1919 में चीनी बहिष्कार आंदोलन किया।
1930 के दशक की विश्वव्यापारी मंदी ने भी राष्ट्रवाद के विकास में योगदान दिया चावल, रबड़ के दाम गिर गए थे।
Hind Chin me Rashtravad Class 10 Solution Notes
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