हार-जीत का संपूर्ण व्‍याख्‍या | Har-Jeet Class 12th Hindi Solution Notes

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 12 हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ बारह ‘हार-जीत (Har-Jeet Class 12th Hindi Solution Notes)’ को पढ़ेंगे।

Har-Jeet Class 12th Hindi

12. हार-जीत
कवि- अशोक वाजपेयी

लेखक-परिचय
जन्म : 16 जनवरी 1941
जन्मस्थान : दुर्ग, छतीसगढ़

शिक्षा: गवर्नमेंट हायर सेकेंडी स्कूल में प्रारम्भिक शिक्षा, सागर विश्वविद्यालय से बी.ए। सेंट स्टीफेंस कॉलेज दिल्ली से अंग्रेजी में एम.ए।
वृति:- भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी
सम्मान- साहित्य अकादमी पुरस्कार, दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान
कृतियाँ: कहीं नहीं वहीं, एक पतंग अनंत में, शहर अब भी संभावना है, थोड़ी सी जगह, आविन्यों, फिलहाल तीसरा साक्ष्य, बहुरि अकेला।

12. हार-जीत

वे उत्सव मना रहे हैं | सारे शहर में रोशनी की जा रही है | उन्हें बताया गया है कि
उनकी सेना और रथ विजय प्राप्त कर लौट रहे हैं |

प्रस्‍तुत पंक्तियाँ अशोक वाजपेयी द्वारा रचित गद्य कविता ‘हार-जीत’ से ली गई हैं जिसमें कवि ने राजनीतिक झूठ को उजागर किया है। कवि कहते हैं कि नेता जनता को भ्रमित करते हैं और उन्हें वास्तविकता से दूर रखते हैं। इस कविता में वाजपेयी जी ने जनता और शासक के सही चित्रण को प्रस्तुत किया है। शासक वर्ग भोली-भाली जनता को गुमराह करके अपना सुख भोगता है। कवि ने जनता को जागरूक करने का प्रयास किया है।

नागरिकों में से ज़्यादातर को पता नहीं है कि किस युद्ध में उनकी सेना और शासक गए थे, युदध किस बात पर था | यह भी नहीं कि शत्रु कौन था पर वे विजयपर्व मनाने की तैयारी में व्यस्त है | उन्हे सिर्फ इतना पता है कि उनकी विजय हई | उनकी से आशय क्या है यह भी स्पष्ट नहीं है।

प्रस्‍तुत पंक्तियाँ अशोक वाजपेयी द्वारा रचित गद्य कविता से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने राजनीतिक झूठ का पर्दाफाश किया है। कवि कहते हैं कि भोली-भाली जनता को युद्ध में उनकी सेना विजयी होकर लौट रही है जबकि शहर के नागरिकों को ये भी पता नहीं कि ये युद्ध किसके बीच हो रहा है। कवि कहना चाहते हैं कि सत्ताधारी लोग जनता को वास्तविकता से दूर रखते हैं और लोगों को यह भी पता नहीं होता कि युद्ध का कारण क्या है। जनता को बस यहीं बताया जाता है कि उनकी सेना विजयी हुई है।

किसकी विजय हुई सेना की, कि शासक की, कि नागरिकों की ? किसी के पास पूछने का अवकाश नहीं है | नागरिकों को नहीं पता कि कितने सैनिक गए थे और कितने विजयी वापस आ रहे हैं।

प्रस्‍तुत पंक्तियाँ अशोक वाजपेयी द्वारा लिखी गद्य कविता से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने राजनीतिक झूठ को उजागर किया है। वे कहते हैं कि भोली-भाली जनता को युद्ध में उनकी सेना विजयी हुई है बताया जाता है, लेकिन जनता को यह भी पता नहीं कि विजय सेना की है या शासक की या नागरिकों की। लोगों के पास इस बारे में पूछने का समय नहीं होता है और न उन्हें यह भी पता होता है कि कितने सैनिक गए थे और कितने वापस आ रहे हैं।

खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है | सिर्फ एक बूढ़ा मशकवाला है जो सड़कों को सींचते हए कह रहा है कि हम एक बार फिर हार गए हैं और गाजे-बाजे के साथ जीत नहीं हार लौट रही है। उस पर कोई ध्यान नहीं देता है और अच्छा यह है कि उस पर सड़कें सींचने भर की जिम्मेवारी है, सच को दर्ज करने या बोलने की नहीं।

प्रस्‍तुत पंक्तियाँ अशोक वाजपेयी द्वारा रचित गद्य कविता से ली गई हैं जिसमें कवि ने राजनीतिक झूठ को उजागर किया है। कवि बताते हैं कि श्रमिकों और मजदूरों जैसे खेतों में रहने वालों की ओर कोई ध्यान नहीं देता है, जो आजादी के समय में अपना योगदान दिया था। बूढ़ा मशकवाला सड़कों को सींचते हुए देश के बुद्धिजीवी वर्ग कहता है कि ये लोग फिर से हार गए हैं और गानों-बाजों के साथ जीत नहीं हो रही है। लेकिन उस पर कोई ध्यान नहीं देता और अच्छी बात है क्योंकि वह राजनीति से मुक्त है।

जिन पर है वे सेना के साथ ही जीतकर लौट रहे है |

प्रस्तुत पंक्तियाँ अशोक वाजपेयी द्वारा रचित हार-जीत शीर्षक गदय कविता से उद्धृत हैं। इस कविता में लेखक ने राजनीतिक झूठ का खुलासा किया है। लेखक के अनुसार, शासक और सत्ताधारी वर्ग कभी अपनी हार की घोषणा नहीं करते हैं। वे अपनी हार को भी विजय के रूप में प्रस्तुत करते हैं ताकि जनता उन्हें बलवान और समर्थवान समझे और उन्हें स्वीकार करें।

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