इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 12 हिन्दी के पद्य भाग के ‘पद (Chhappay Class 12 Solution Notes)’ के व्याख्या और सभी ऑब्जेक्टिव प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
4. छप्पय
कवि-परिचय
लेखक- नाभादास
जन्म : 1570-1600 (अनुमानित)
जन्मस्थान : दक्षिण भारत में
माता-पिता : शैशव में पिता की मृत्यु और अकाल के कारण माता के साथ जयपुर (राजस्थान) में प्रवास
दीक्षा गुरु : स्वामी अग्रदास (अग्रअली)
शिक्षा : गुरु की देख-रेख में स्वाध्याय, सत्संग द्वारा ज्ञानार्जन।
कृतियाँ : भक्तमाल, अष्टयाम (ब्रजभाषा गद्य में)
गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन – वैष्णव संप्रदाय में दीक्षित
Chhappay Class 12th Hindi Solution Notes
कबीर
भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए |
योग यज्ञ व्रत दान भजन बिन तुच्छ दिखाए ||
प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत हैं, जिससे नाभादास ने कबीरवाणी की विशेषता को समझाया है। कबीरदास कहते हैं कि जो व्यक्ति भक्ति से दूर हो जाता है, वह अधर्म में लिप्त व्यक्तियों की तरह काम करता है। उन्होंने भक्ति के अलावा योग, यज्ञ, व्रत, दान और भजन जैसी अन्य क्रियाएं तुच्छ मानी है।
हिंदू तुरक प्रमान रमैनी सबदी साखी।
पक्षपात नहीं बचन सबहिके हितके भाषी ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से लिए गए ये पंक्तियाँ कहती हैं कि नाभादास ने कबीरवाणी की विशेषता पर चर्चा की है। उनके अनुसार, कबीर हमेशा हिंदू और मुसलमानों को समान ढंग से देखते थे और सभी के हित की बात कहते थे। उन्होंने किसी भी धर्म को उच्च या निम्न नहीं माना बल्कि सबको समानता की दिशा में आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया।
आरूढ़ दशा ह्वै जगत पै, मुख देखी नाही भनी ।
कबीर कानि राखी नहीं, वर्णोश्रम षट् दर्शनी ||
प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत है जिसके माध्यम से नाभदास ने कबीरवाणी की विशेषता पर प्रकाश डाला है।नाभादास बताते हैं कि कबीर ने कभी भी पक्षपातपूर्ण बात नहीं कही, वे सभी को बराबर समझते थे। वे चार वर्ण, चार आश्रम और छह दर्शन को भी नहीं मानते थे। उन्होंने हमेशा सीधे और सच्चे शब्दों में बात की है।
सूरदास
उक्ति चौज अनुप्रास वर्ण अस्थिति अतिभारी |
वचन प्रीति निर्वेही अर्थ अद्भुत तुकधारी ||
प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से यह पंक्तियाँ उद्धृत हैं जिससे नाभादास ने सूरदास के विशेषताओं को बताया है। सूरदास की कविताएँ युक्ति, चमत्कार, अनुप्रास और वर्ण से भरी होती हैं। सूरदास की कविताएँ लयबद्ध और संगीतात्मक होती हैं। सूरदास अपनी कविताओं की शुरुआत प्रेम भरे वचनों से करते हैं और उनका अंत भी उन्हीं वचनों से होता है।
पद प्रतिबिंबित दिवि दृष्टि हृदय हरि लीला भासी |
जन्म कर्म गुन रूप सबहि रसना परकासी ||
प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत हैं जिसके माध्यम से नाभदास ने सूरदास की विशेषताओं को बताया है। नाभादास कहते हैं कि सूरदास की दृष्टि दिव्य होती है। सूरदास ने अपनी कविताओं में श्री कृष्ण की लीला का वर्णन किया है। उन्होंने प्रभु के जन्म, कर्म, गुण, रूप सभी को अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर अपने वचनों से प्रकाशित किया।
विमल बुद्धि हो तासुकी, जो यह गुन श्रवननि धरै |
सूर कवित सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालन करै ||
प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित ‘भक्तमाल’ से लिए गए अनुच्छेद जिनमें सूरदास के विशेषताओं का वर्णन है। नाभादास कहते हैं कि सूरदास द्वारा कही गई भगवान के गुणों को सुनने से मन विमल हो जाता है और उनकी कविताओं के प्रभाव से कोई भी व्यक्ति सिर चालन नहीं कर पाता। नाभादास कहते हैं कि सूरदास के जैसा कोई भी कवि नहीं हो सकता जो भगवान के गुणों को इतनी दिव्यता से व्यक्त कर सके।
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