इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 12 हिन्दी के गद्य भाग के पाठ छ: ‘एक लेख और एक पत्र (Ek Lekh Aur Ek Patra Class 12th Hindi)’ को पढ़ेंगे।
6. एक लेख और एक पत्र
लेखक- भगत सिंह
लेखक परिचय
जन्म- 28 सितम्बर 1907
निधन- 23 मार्च 1931 (शाम 7:33 मिनट पर, लाहौर षड्यंत्र केस में फांसी)
जन्म स्थान – बंगा चक्क न० 105 गगैरा ब्रांच वर्तमान लायलपुर (पाकिस्तान)
माता-पिता – विद्यावती और सरदार किशन सिंह
शिक्षा- आरंभिक शिक्षा गाँव बंगा में, लाहौर के डी.ए.वी स्कूल से 9वीं तक की पढ़ाई, बी.ए के दौरान पढ़ाई छोड़ दी,
परिवार- सम्पूर्ण परिवार स्वतन्त्रता सेनानी
प्रभाव- बचपन में करतार सिंह सराभा और 1914 के गदर पार्टी के प्रति तीव्र आकर्षण। 16 नवंबर 1915 को सराभा की फांसी के समय भगत सिंह 8 वर्ष की उम्र के थे। सराभा का चित्र अपनी जेब में रखते थे।
2 वर्ष की उम्र में जालियाँवाला बाग की मिट्टी से क्रांतिकारी जीवन की शुरुवात, 1922 में चौराचौरी कांड के बाद महात्मा गांधी और काँग्रेस से मोहभंग, 1923 में पढ़ाई और घर छोड़ गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ, 1926 में नौजवान भारत सभा का गठन, 1928-31 तक चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ का गठन, 8 अप्रैल 1929 को बटुकेशवर दत्त और राजगुरु के साथ केन्द्रीय असेंबली में बम फेंका और गिरफ्तार हुए।
कृतियाँ- पंजाब की भाषा और लिपि समस्या, विश्वप्रेम, युवक, मैं नास्तिक क्यों हुँ, अछूत समस्या, विद्यार्थी और राजनीति, सत्याग्रह और हड़ताले, बम का दर्शन, शचींद्रनाथ सन्याल की पुस्तक बंदी जीवन और ‘डॉन ब्रीन की आत्मकथा’ का अनुवाद।
विद्यार्थी और राजनीति लेख का सारांश
भगत सिंह ने अपने लेख में बताया है कि विद्यार्थियों को राजनीति में भाग लेना चाहिए या नहीं। उनका मानना है कि छात्रों को अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए राजनीति में भाग लेना चाहिए क्योंकि देश का भविष्य नौजवानों के हाथ में होता है। लेखक का मानना है कि छात्रों को पढ़ाई के साथ-साथ देश की परिस्थितियों का ज्ञान भी होना चाहिए ताकि वे देश के सुधार में भी अपना योगदान दे सकें।
लेखक बताते हैं कि पंजाब सरकार विद्यार्थियों से कॉलेज में दाखिल दाखिल होने से पहले उनसे इस शर्त का हस्ताक्षर लेती है कि वे राजनीति में भाग नहीं लेंगे। ऐसी शिक्षा से छात्र तो क्लर्क बन सकते हैं, कुछ नहीं। लेखक कहते हैं कि प्रोफेसर का अपना ज्ञान अधूरा होता है जब कोई विद्यार्थी प्रोफेसर को रुसी लेखक की पुस्तक दिखाता है तो छात्र को बोल्शेविक पार्टी का सदस्य कहा जाता है।
सुखदेव के नाम पत्र का सारांश
भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी मित्र सुखदेव के पत्र का उत्तर इस पत्र के माध्यम से दिया है जिसमें उन्होंने कुछ समस्याओं और कठिनाइयों के बारे में ध्यान आकर्षित किया है। भगत सिंह ने अपने और सुखदेव के भीतर होने वाले परिवर्तनों को भी बताया है। पूर्व के दौर में सुखदेव ने आत्महत्या को अत्यंत निकृष्ट और अनचाहे कृत्य माना था जबकि भगत सिंह ने उसका समर्थन किया था। लेकिन बाद में भगत सिंह ने आत्महत्या को कायरता, निराशा और असफलता से निर्मित मानसिकता का समर्थन नहीं किया।
मानते हैं कि परिणाम जबरदस्त होते हैं, जबकि सुखदेव कुछ अवस्थाओं में आत्महत्या को अनिवार्य और आवश्यक मानने लगे हैं।
भगत सिंह कहते हैं कि मनुष्य किसी भी काम को उचित मानकर ही करता है। वे कहते हैं कि कार्य को करने के बाद परिणामों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। वे कहते हैं कि अगर मृत्युदंड मिलना तय है तो हमें उस दिन की प्रतीक्षा करनी चाहिए लेकिन आत्महत्या करना कायरता होगी।
भगत सिंह उन लोगों की सराहना करते हैं जो जेलों का दंड भुगतकर लौटने के बाद भी संघर्षशील हैं। वे कहते हैं कि मुझे मृत्युदंड की सजा सुनाई जाएगी, इसपर मुझे पूर्ण विश्वास है, और मुझे किसी भी प्रकार की क्षमा या नरम व्यवहार की कोई आशा नहीं है।
अंततः अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए भगत सिंह कहते हैं कि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए। मैं चाहता हूँ कि जब यह आंदोलन अपनी चरम पर पहुंचे तो मुझे फांसी दे दी जाए। Ek Lekh Aur Ek Patra Class 12th Hindi
Read More – click here
YouTube Video – click here